एक माँ भ्रूण हत्या के लिए हॉस्पिटल में जाती है। “भ्रूण हत्या पाप है”, हॉस्पिटल में लिखे इस वाक्य को पढ़ कर वह वापस घर लौट आती है। उसके बाद उसे बेटा होता है और बड़ा होकर वह बेटा डाकू बन जाता है। माँ सोचती है कि “उस दिन यदि मैं भ्रूण हत्या करवा लेती तो ठीक रहता”, तो यह पाप किसको लगेगा?
माँ ने, “भ्रूण हत्या पाप है”, यह देखकर अपना विचार बदला तो वह एक बहुत बड़े पाप से बच गई- अपने कलेजे के टुकड़े के टुकड़े करने के पाप से, अपने खून का खून करने के पाप से -वह बच गई। एक पाप से तो बच गई लेकिन उसका बेटा बड़ा होकर डाकू बना इसमें कहीं न कहीं उस माँ की चूक है। बेटे को जन्म तो दिया पर संस्कार नहीं दे पाई। माँ ने अपने बेटे को अच्छे संस्कार दिए होते, तो जो बेटा जन्म लेकर डाकू बना वह सन्त भी बन सकता था। यह माँ की चूक है। उसकी यह सोच – “इसको जन्म देने की जगह में गर्भ में ही मार देती”- यह घोर भाव हिंसा है, इस तरह का भाव नहीं आना चाहिए और इससे माँ को पाप बन्ध होगा।
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