आचार्य कुन्दकुन्द के अनुसार सल्लेखना की क्या व्याख्या है?

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शंका

आचार्य कुन्दकुन्द के अनुसार सल्लेखना की क्या व्याख्या है?

समाधान

आचार्य कुन्दकुन्द ने सल्लेखना की चर्चा अपने भक्तियों में की। आचार्य कुन्दकुन्द ही पहले आचार्य हुए जिन्होंने भक्तियाँ लिखीं और उनकी भक्ति साहित्य में 

‘दु:क्खक्खओं कम्मक्खओं बोहिलाहो सुगइगमणं समाहिमरणं जिनगुणसंपत्ति होउ मज्झं’

यह शब्द लिया। उन्होंने चारित्र पाहुड के अन्तर्गत सल्लेखना को ‘पश्चिमसल्लेह नाभनिया’ ऐसा कह कर है एक महान व्रत भी कहा है। इसलिए सल्लेखना हमारी साधना का प्राण तत्त्व है। इसे भूलना नहीं चाहिए। आचार्य कुन्दकुन्द की इस उक्ति को ज़रूर प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

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