जैन धर्म के अनुसार ब्रह्मांड की रचना कैसे हुई? केवल चौबीस तीर्थंकर ही होंगे, यह कैसे निश्चित हुआ?

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शंका

जैन धर्म के अनुसार ब्रह्मांड की रचना कैसे हुई? केवल चौबीस तीर्थंकर ही होंगे, यह कैसे निश्चित हुआ?

समाधान

उस व्यक्ति से कहो- ‘अगर उत्तर तुम समझना चाहो तो बहुत आसानी से मिल सकते हैं और इन सवालों का अगर कोई सन्तोषजनक जवाब है, तो मात्र जैन धर्म के पास ही है।’ ब्रह्मांड की उत्पत्ति, सृष्टि की उत्पत्ति के सन्दर्भ में जो वैदिक परम्परा की कथा है कि ‘ईश्वर ने बनाया!’ उसमें बहुत सारे अनुत्तरित प्रश्न हैं और विज्ञान ने भी जिस ब्रह्मांड की बात की है वह एक खोज है, जो अभी पूरी तरह स्थापित नहीं हो सकी। जैन धर्म कहता है कि यह सृष्टि अनादि से है। न इसकी उत्पत्ति हुई है न कभी इसका विनाश हो सकता है। सृष्टि में जितनी भी वस्तुएँ है, जितने भी द्रव्य हैं, जितने भी पदार्थ हैं वे अनादि से हैं और अनन्त काल तक रहेंगे। इनमें स्वाभाविक परिणमन होता है, ये खुद अपने स्वभाव से परिवर्तित होते हैं। इनमें प्रतिक्षण नई-नई अवस्थाओं की उत्पत्ति होती है, पुरानी अवस्थाओं का विनाश होता है और नई अवस्था की उत्पत्ति और पुरानी अवस्था के विनाश के बाद भी उसकी स्थिरता कायम रहती है। यही उत्पत्ति, विनाश और स्थिरता हर वस्तु का स्वभाव है और इसी कारण यह अनादि से प्रवर्तित है। सृष्टि का क्रम चलता है, बदलता है। ये चीजें साथ-साथ चलती रहती हैं, यह स्वभाव से होता है। इसे किसी ने बनाया नहीं। सब कुछ स्वाभाविक परिवर्तन है।

जहाँ तक प्रश्न है कि ‘तीर्थंकर चौबीस ही क्यों होते हैं?’ तो कुछ चीजें ऐसी होती जो स्वभाव से होती हैं, स्वभाव की बात को हम तर्क से नहीं काट सकते हैं। यदि आपसे कोई सवाल करे कि ‘आपकी आँखें दो ही क्यों है चार क्यों नहीं? कान दो ही क्यों है चार क्यों नहीं?’ तो आपके पास क्या जवाब होगा? दो है इसलिए हैं। २४ होते हैं इसलिए हैं। चूंकि एक सृष्टि के क्रम में जो ये कालचक्र चलता है उसका कालचक्र में २४ तीर्थंकरो से ही धर्म की पूर्ण आराधना हो जाती है, २५वें की जरूरत नहीं पड़ती इसलिए २५ नहीं होते। २४ हैं तो हैं। जिन लोगों को इसके बारे में ज्यादा उहापोह करने की इच्छा है, उनके लिए बैरिस्टर चंपत राय जैन की एक कृति है- “The Key of Knowledge“। वह महाकृति लगभग १००० पेज की है, उसे आप पढ़ें। उसमें एक बहुत बड़ा चैप्टर है- creation‘ (सृजन) का और उन्होंने इस क्रिएशन के बारे में जो कुछ लिखा है जैन धर्म के हिसाब से वह इतना तार्किक और वैज्ञानिक है कि पढ़ने के बाद कोई भी व्यक्ति उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगा।

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