प्रेस विज्ञप्ति
आचार्यश्री विद्यासागर महाराज की समाधि, मोदी ने भी किए श्रद्धासुमन अर्पित
राजनांदगांव, 18 फरवरी: विश्व प्रसिद्ध दिगंबर जैन संत आचार्यश्री विद्यासागर महामुनिराज आज तड़के छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ में सल्लेखनापूर्वक समाधि की अवस्था को प्राप्त कर ब्रह्मलीन हो गए। देश के विभिन्न हिस्सों से आए हजारों जैन धर्मावलंबियों की मौजूदगी में दिन में उनका अंतिम संस्कार किया गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश के राज्यपाल मंगुभाई पटेल, मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव, अनेक केंद्रीय मंत्रियों, अनेक राज्यों के मुख्यमंत्रियों और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) तथा कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने आचार्यश्री विद्यासागर के समाधिस्थ होने पर संवेदनाएं व्यक्त करते हुए उनके कार्यों का स्मरण किया है।
श्री मोदी ने दिल्ली में भाजपा के राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान अपने संबोधन में आचार्यश्री का स्मरण किया और वे उनका स्मरण करते हुए भावुक हो गए। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कहा, “मुझे विश्वास है कि संत शिरोमणि आचार्यश्री 108 विद्यासागर जी महाराज जी के सिद्धांत और विचारों से भारत भूमि को सदैव प्रेरणा मिलती रहेगी।” श्री मोदी ने आचार्यश्री के साथ हुयीं उनकी मुलाकातों का भी जिक्र किया। अधिवेशन के दौरान भाजपा नेताओं ने दो मिनट का मौन रखकर आचार्यश्री के प्रति श्रद्धासुमन अर्पित किए।
My thoughts and prayers are with the countless devotees of Acharya Shri 108 Vidhyasagar Ji Maharaj Ji. He will be remembered by the coming generations for his invaluable contributions to society, especially his efforts towards spiritual awakening among people, his work towards… pic.twitter.com/jiMMYhxE9r
— Narendra Modi (@narendramodi) February 18, 2024
डोंगरगढ़ स्थित चंद्रगिरी तीर्थ क्षेत्र में रविवार तड़के लगभग दो बजकर पैंतीस मिनट पर आचार्यश्री ने अंतिम सांस ली। वे 77 वर्ष के थे। कुछ दिनों से अस्वस्थता के बावजूद उन्होंने अपनी निर्धारित दिनचर्या और साधना का क्रम नहीं छोड़ा। आचार्यश्री ने सल्लेखना पूर्वक समाधि के उद्देश्य से पिछले तीन दिनों से उपवास और मौन का संकल्प लेकर अन्न जल का भी त्याग कर दिया था। आचार्यश्री के समीप अनेक दिगंबर जैन मुनि, ब्रह्मचारी भैया और श्रद्धालु मौजूद थे। जैन परंपराओं के अनुसार आचार्यश्री ने ब्रतों का पालन करते हुए आचार्य पद भी त्याग दिया।चंद्रगिरी तीर्थक्षेत्र के प्रबंधकों के अनुसार आचार्यश्री के अस्वस्थ होने की सूचना के चलते यहां पर हजारों की संख्या में जैन धर्मावलंबी पहले ही आ चुके थे। समाधि की सूचना के बाद हजारों की तादाद में लोग और पहुंच गए। दिन में लगभग एक बजे जैन मुनियों की ओर से कराए गए धार्मिक संस्कार के बीच आचार्यश्री की पार्थिवदेह को एक विशेष प्रकार से तैयार की गयी डोली में विराजमान कर अंतिम संस्कार स्थल ले जाया गया, जहां पर अंतिम संस्कार संपन्न हुआ और उनकी देह अग्नि को समर्पित कर दी गयी।प्रबंधकों के अनुसार जैन मुनि योगसागर महाराज, समतासागर महाराज, अभयसागर महाराज, संभवसागर महाराज, प्रसादसागर महाराज और अन्य संघस्थ मुनि डोंगरगढ़ में मौजूद हैं। इसके अलावा देश के विभिन्न हिस्सों में मौजूद दिगंबर जैन संत पदविहार करते हुए डोंगरगढ़ की ओर बढ़ रहे हैं। इसके मद्देनजर यहां पर आवश्यक व्यवस्थाएं की जा रही हैं। आचार्यश्री से दीक्षित हजारों की संख्या में ब्रह्मचारी भैया और दीदियां भी डोंगरगढ़ में मौजूद हैं।आचार्यश्री का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक राज्य के बेलगांव जिले के सदलगा गांव में हुआ था। वैराग्य की भावना बचपन से ही उनके कार्यों में परिलक्षित होती थी और उन्होंने 30 जून 1968 को राजस्थान के अजमेर नगर में मात्र 22 वर्ष की युवास्था में ही अपने गुरू आचार्यश्री ज्ञानसागर जी महाराज से मुनिदीक्षा ग्रहण की थी। आचार्यश्री ज्ञानसागर महाराज ने अपने शिष्य मुनि विद्यासागर की कठिन तपस्या को देखते हुए उन्हें युवावस्था में ही आचार्य पद सौंप दिया था। अनेक भाषाओं के जानकार और मूकमाटी जैसे महाकाव्य की रचना कर चुके आचार्य विद्यासागर के जीवन का काफी समय मध्यप्रदेश में बीता। अनेक पुस्तकों की रचना कर चुके आचार्यश्री के भक्तों में सिर्फ जैन धर्मावलंबी ही नहीं, बल्कि जैनेतर व्यक्ति भी शामिल हैं।हिंदी, संस्कृत, मराठी, कन्नड़, प्राकृत और अन्य भाषाओं के जानकार आचार्यश्री ने अपने जीवनकाल में लगभग साढ़े तीन सौ मुनि और आर्यिका दीक्षाएं दीं। इसके अलावा हजारों की संख्या में ब्रह्मचारी भैया और दीदियां भी उनसे दीक्षित हैं।
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