अगुरुलघुत्व गुण का क्या कारण है? क्या अगुरुलघुत्व गुण सभी द्रव्यों की शुभ एवं अशुभ दशाओं में पाया जाता है?
अगुरुलघुगुण, अगुरुलघुत्व और अगुरुलघुकर्म, तीनों बता देता हूँ। अगुरुलघुकर्म नाम कर्म की एक प्रकृति है, जिसके कारण आपका शरीर न तो इतना भारी होता है कि आप बैठें तो उठ न पायें और न इतना हल्का होता है कि अर्कतुल की तरह आकाश में उड़ते रहें, वह अपने शरीर के आयतन को बनाये रखता है। चाहे जब उठ सके, चाहे जब बैठ सके। ये अगुरुलघु नाम कर्म है।
अगुरुलघुत्व सिद्धों को होता है। गोत्र कर्म के कारण कभी हम उच्च कुल में जन्म लेते हैं गुरु हो जाते हैं, कभी नीच कुल में जन्म लेते हैं लघु हो जाते हैं। जिसने गोत्र कर्म का विनाश कर दिया, वे न कभी गुरु होंगे, न कभी न कभी लघु होंगे। ये अगुरुलघुत्व है जो गोत्र कर्म के अभाव में होता है।
अगुरुलघुगुण सभी द्रव्यों में पाया जाता है और उसके कारण हर द्रव्य की द्रव्यता कायम रहती है एक द्रव्य दूसरे द्रव्य रूप नहीं होता, एक द्रव्य के गुण बिखर कर जुदे-जुदे नहीं होते, एक पर्याय दूसरी पर्याय के बीच में शामिल नहीं होती। यह एक विशेष गुण है, जो हर द्रव्य में पाया जाता है और इसे केवल आगम के प्रमाण से ही जाना जा सकता है।
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