शंका
सर्वार्थ-सिद्धि में अहमेंद्र तैंतीस सागर तक अनवरत रूप से तत्त्व की चर्चा करते रहते हैं। मेरी जिज्ञासा यह है कि वो स्वयं में तत्त्व का चिंतन करते रहते हैं या वहाँ पर जो दूसरे अहमेंद्र होते हैं उनके साथ में अपनी तत्त्व चर्चा को साझा करते हैं?
समाधान
आगम में इसका कोई स्पष्ट विधान नहीं मिलता लेकिन चर्चा की बात आती है। गोष्ठी कम से कम दो के बिना नहीं होती। इसलिए वो आपस में मिल-जुलकर ही बातचीत करते होंगे, ऐसा मेरा अनुमान है पर इसका कोई आगमिक आधार नहीं। इसलिए स्पष्ट अवधारणात्मक तरीके से मैं नहीं कह सकता।
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