आज की generation (पीढ़ी) में बच्चे बहुत प्रश्न करते हैं कि ‘सभी इंसान समान हैं, फिर Inter-Caste marriage (अन्तर्जातीय विवाह) में क्या problem (समस्या) है?
इंसान समान हैं, विवाह और इंसानियत अलग चीज है। अगर देखा जाए तो सब प्राणी समान हैं। प्राणी समान होने के कारण व्यवस्थाएँ तो समान नहीं होंगी। हम मानवता के नाते सबको एक समान मानें ये अलग बात है। लेकिन जो हमारी सामाजिक व्यवस्थाएँ हैं उन सब की बहुत बड़ी भूमिका होती है। उनकी अपनी महिमा होती है। विभिन्न समाजों के अपने रीति-रिवाज होते हैं, अपने धार्मिक विश्वास होते हैं। उन सबको ठीक ढंग से निभा पाना बहुत मुश्किल होता है। जो लोग बाहर जाकर ये कहते हैं कि समाज के बाहर Inter-Caste marriage (अन्तर्जातीय विवाह) करने में क्या हानि है? मैं उनसे कहता हूँ कि मेरे सम्पर्क में ऐसे कई लड़के और लड़कियाँ हैं जिन्होंने अपने माता-पिता के समस्त आग्रह और अनुरोधों को ठुकरा कर किसी के प्यार व मोह में फँसकर इस तरह का कदम उठाया और आज पछताते हैं। थोड़ा जाकर के उनसे बात करो, वो कहते हैं कि ‘निश्चित रूप से मेरा ये कदम जीवन का गलत कदम था।’ क्योंकि हमारा जो धार्मिक विश्वास है हमारी जो परम्परा है, हमारी जो रीतियाँ हैं, हमारी जो पारिवारिक पृष्ठ भूमि है, ये जब तक नहीं मिलेंगी जीवन का निर्वाण कठिन होता है। नीतिशास्त्र कहते हैं कि “समानस्य शीलम् बसनेस सख्यम् शील” और स्वभाव में जब तक मित्रता नहीं आती है, तो मित्रता को निभाने के लिए ये जरूरी है कि एक समानता होनी चाहिए।
चार दिन पहले एक बहन मेरे पास आई जिसने एक अजैन ठाकुर लड़के से शादी कर ली। यहाँ आई थी और उसने अपनी आप बीती सुनाई -‘महाराज जी! मैं क्या करूँ? मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई।’ मैंने एक ही सवाल किया कि ‘क्या आज तुम अपने निर्णय से खुश हो?’ तो बोली कि ‘जिस समय मेरे विवाह की बात हो रही थी उस समय मुझे लगता था कि मेरा निर्णय बिल्कुल सही है, लेकिन आज मैं सोचती हूँ कि मैंने बहुत गलत निर्णय लिया। वैसे मेरी सुख-सुविधाओं में कमी नहीं है। बाकी सब कुछ ठीक है, लेकिन जो rituals हैं उनको लेकर मेरा मन सदैव कुन्ठित रहता है। मैंने उस लड़की से सवाल किया कि “आज कोई लड़की तुम्हारी तरह से विवाह करना चाहे तो तुम्हारा क्या परामर्श होगा?” तो उस लड़की ने कहा ‘मैं तो एक ही बात कहूँगी कि भूल कर भी कभी ऐसा कदम मत उठाना।’
ऐसे एक नहीं अनेक प्रसंग हैं। इसलिए भावनाओं में बहने की बात नहीं है। इंसानियत के नाते सब एक कहने का मतलब ये नहीं है कि सारी व्यवस्थाएँ एक कर दें। यदि आप कहते हो कि सब इंसान एक हैं तो पत्नी और पुत्री को भी एक मान लेना चाहिए, क्या आप मानते हो? पत्नी क्या, पति व पुत्र को बराबर मानती है? क्यों नहीं मानते हो? अगर देखा जाये तो पत्नी में भी वही इंसान है और पुत्री में भी वही इंसान है और पति और पुत्र में भी वही इंसान है। समाज में व्यवहार कैसे चलता है? व्यवहार, व्यवहार के तरीके से ही चलता है। जिस दिन समाज में पति व पुत्र व पत्नी और पुत्री को एक समान मान लिया जायेगा तो उस समाज का क्या हाल होगा आप कल्पना कर सकते हो। उस दिन आदमी जानवर बन जायेगा। इसलिए समाज को समाज बनाये रखने के लिए हमारी जो सामाजिक संहिताएँ हैं उन्हें जीवित रखना बहुत जरूरी है उसके बिना जीवन कभी सफल नहीं हो सकता है।
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