धर्म के लिए धन जरुरी?
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धर्म के लिए धन जरुरी? Money must for religious practice धन से कभी धर्म नहीं होता है, धन के साथ भावनाएं भी जुड़ी होनी चाहिये। बेमन और बिना भावना से किया हुआ धर्म कोई भी फल नहीं देता है। जो धन धर्म, साधना और पुण्य कार्यों में लगता है समझो उस धन की वास्तविकता में…

विवाह संबंध में समान स्तर व संस्कारों का महत्व
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विवाह संबंध में समान स्तर व संस्कारों का महत्व Importance of same status and virtues in matrimonial relations विवाह संबंध करते समय किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, अपने से ज्यादा ऊपर या नीचे के स्तर वाले व्यक्ति से संबंध करने में क्या समस्या तथा धार्मिक स्तर देखना भी क्यों जरूरी? जाने मुनि श्री…

स्वाभिमान और अभिमान में अंतर
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स्वाभिमान और अभिमान में अंतर Self respect and pride “दूसरों को कम आँकना एवं स्वयं को बड़ा समझना अभिमान है। और अपना सम्मान का भाव एवं दूसरों का सम्मान करना स्वाभिमान है। अभिमानी अन्याय करता है और स्वाभिमानी उसका विरोध – सुनिये मुनि श्री प्रमाण सागर जी के विचार “ Share

द्रव्य शुद्धि और भाव शुद्धि
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द्रव्य शुद्धि और भाव शुद्धि Material and Notional cleansing द्रव्य की शुद्धि के बिना भावों की शुद्धि नही होती, भीतर की शुद्धि के लिए बहार की शुद्धि अत्यंत आवश्यक है – मुनि श्री प्रमाण सागर जी Share

खेती में हिंसा से कैसे बचें
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खेती में हिंसा से कैसे बचें How to do non-violent farming? आज कृषि क्षेत्र में उत्पादन बढाने और अनेक कारणों से अत्याधिक कीटनाशकों का उपयोग हो रहा है जिसके कारण महाहिंसा को दोष लगता है, ऐसा क्या करें की खेती करते हुए हम हिंसा से खुदको बचा सकें सुनिए मुनि श्री प्रमाण सागर जी के…

ब्याज का व्यापार उचित है?
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ब्याज का व्यापार उचित है? Should we do money lending business? क्या किसी को ब्याज आदि पर पैसा देना उचित है? क्या इससे हमे कोई पाप का बंध होता है, वह कौनसी बातें है जिनका हमे ध्यान रखना चाहिए – सुनिए मुनि श्री प्रमाण सागर जी के विचार Share

धार्मिक संस्कारों को जीवन में कैसे उतारें?
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धार्मिक संस्कारों को जीवन में कैसे उतारें? Imbibe religious virtues in life धार्मिक संस्कारों को जीवन में और अपने आचरण में उतारने के लिए हमें अच्छी संगती का चयन करना बेहत जरुरी है – जाने मुनि श्री प्रमाण सागर जी द्वारा धार्मिक संस्कारों को जीवन में कैसे उतारें. Share

धर्म संकट को टालता नहीं, संकट में संभालता है
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धर्म संकट को टालता नहीं, संकट में संभालता है Dharm doesn’t avoid but teaches to handle troubles कई लोगों के मन में धर्म की अलग परिभाषा है लोग समझते है की धर्म करने से संकटों को टाल सकते हैं, लेकिन हमने जैसे कर्म करे है वैसा हमे भोगना ही पड़ेगा लेकिन अब सवाल ये आता…

आहारचर्या और अन्तराय कर्म
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आहारचर्या और अन्तराय कर्म Aaharcharya & Antray Karma साधु अंतराय टाल कर आहार क्यों लेते हैं? अंतराय कर्म से ये अंतराय किस प्रकार भिन्न है, दृष्टांत के साथ समझें मुनि श्री की पीयूष वाणी में। Share

आत्मा के अस्तित्व की सिद्धि कैसे?
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आत्मा के अस्तित्व की सिद्धि कैसे? How to realize soul’s existence? आत्मा शरीर से भिन्न है व शरीर नश्वर है तथा आत्मा परिगमन करती है, इस सिद्धांत के प्रतिपादन को कैसे पुष्ट कर रहे हैं मुनि श्री देखें वीडियो में। Share

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