कई बार ऐसा होता है कि मम्मी-पापा जी बात नहीं मानते और उन्हें बहुत दुःख होता है, तो हम उन्हें खुश कैसे करें?
बच्चों से मैं कहता हूं सबसे पहले ये उनको दिमाग में बैठाना चाहिए कि उनके माँ-बाप उनके सबसे बड़े well-wisher होते हैं। माता-पिता यदि अपने बच्चों के लिए कोई हिदायतें देते हैं, किसी बात में रोकते-टोकते हैं, तो वो उनके अच्छे के लिए रोकते हैं, उनके बुरे के लिए नहीं।
कोई भी माँ-बाप कभी नहीं चाहते कि मेरा बच्चा आगे न बढे, मेरे बच्चे का अहित हो ऐसा वह कभी नहीं चाहते। बच्चे, बच्चे होते हैं। उनको अनुभव की कमी होती है, ज्ञान की कमी होती है, समझ की कमी होती है। इसलिए कई बार बच्चे ऐसे हरकतें कर बैठते हैं, जो उनके लिए, आगे उनके प्रोग्रेस में बाधा बन जाये। तो यदि माँ-बाप कुछ बोलते हैं, तो प्रत्येक बच्चों को चाहिए कि वे अपनी माँ-बाप की पूरी बात का अक्षरशः पालन करें। अगर माँ-बाप कुछ बोल रहे हो और तुम्हारी इच्छा नहीं है, तो एक बार request करो, 2 बार request करो, 3 बार request कर लो। और तीन बार लगातार माँ-बाप मना करते हैं, तो समझ लो ज़रूर कोई गड़बड़ है। हमें अब ज़्यादा जिद करने की आवश्यकता नहीं है।
जो बच्चे माता-पिता की बात मानते हैं, आज्ञाकारी होते हैं उनके माँ-बाप हमेशा खुश रहते हैं। और आप चाहते हो माँ-बाप को खुश करें, तो माँ-बाप को खुश करने का एक ही उपाय है। माँ बाप कब खुश होते है? जब बच्चे आगे बढ़ते हैं, अच्छा करते हैं। माता-पिता की बात मानते हैं, तो आगे बढ़ते हैं। तो माँ-बाप की बात बच्चों को मानना चाहिए। उनको कभी उनकी बात की उपेक्षा नहीं करना चाहिए, उनकी अवज्ञा नहीं करना चाहिए, ताकि माँ-बाप के मार्गदर्शन में अपने आप को आगे बढ़ाएँ। और माँ-बाप को भी चाहिए कि केवल माँ-बाप होने के नाते बच्चों की अच्छी बुरी भावनाओं को न दबाएँ। अगर बच्चे कोई अच्छी बात रखते हैं, तो उसका ध्यान रखो। हर बात में ना-ना करोगे, तो बच्चे आपकी नहीं सुनेंगे। कुछ-कुछ बातें बच्चों की भी सुननी चाहिए। लेकिन बच्चों को चाहिए कि जो माँ-बाप कहते हैं, उसे सुनें।
बच्चों को क्या बुरा लगता है? बच्चे चाहते हमको टीवी देखना है, माँ-बाप कहते बेटा पढ़ाई करना है। बच्चे कहते हमको खेलने जाना है, माँ-बाप कहते बेटे होमवर्क करना है। बच्चे कहते हैं हमको कुरकुरे खाना है, मैगी खाना है, यह अटपट चीजें खाना है। माँ बाप रोकते हैं। तो ultimately इससे फायदा किसका है? माँ-बाप का या बच्चे का? बच्चे का। तो जिसमें बच्चों का फायदा है, बच्चों को उसे ज़रूर स्वीकार करना चाहिए।
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