बिन अट्ठाईस मूल गुणों के मुनि पूज्यनीय है या नहीं?

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शंका

हमारे आराध्य, देव शास्त्र और गुरु हैं। देवों में अगर एक भी दोष हो, तो वे पूजनीय नहीं होते हैं। अगर शास्त्रों में कोई शास्त्र के विरुद्ध बात हो, तो वह शास्त्र भी पूजनीय नहीं होता। तो मुनियों में अगर अट्ठाइस मूल गुण नहीं हो, तो वह पूजनीय है या नहीं?

समाधान

आपकी जेब में रखा नोट कागज़ है पर उसे आप रुपया कहते हैं, वो मुद्रा के रूप में गिनी जाती है, आखिर क्यों? वो कागज़ है पर मुद्रा हो गई! साधारण कागज़ मुद्रा कब बनती है; जब उस पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की सील लगती है, गवर्नर की मोहर लगती है तब जाकर वो साधारण कागज़, मुद्रा का रूप धारण करती है। और यदि वह मुद्रा जाली हो तो मुद्रा चलेगी? नहीं! तब क्या होता है? गिरफ्तार होना होता है। 

ऐसे ही ये जिन मुद्रा है, केवल कपड़े उतार लेने का नाम जिन मुद्रा नहीं! दिगम्बरत्व के साथ, भगवान द्वारा बताए गए मार्ग के अनुसार अट्ठाइस मूल गुणों का वृतारोपण करने के बाद ही एक साधारण व्यक्ति दिगम्बर मुनि बनकर साधु परमेष्ठी का रूप धारण करता है और वो मुद्रा अगर गड़बड़ा गई तो फिर वह जिन मुद्रा कहाँ से हुई? अब ये मुद्रा है, तब हमारी वैसी चर्या-क्रिया हो; और यदि वैसी चर्या-क्रिया नहीं है, तो मुद्रा नहीं साधारण कागज़ है, उसका कोई मूल्य नहीं। इसलिए मुद्रा वंदनीय नहीं, मुद्रा के साथ जो गुण हैं वो वंदनीय हैं। 

आप कह रहे हैं, मुद्रा में मलिनता आ जाती है, तो भी चल जाता है। नोट मैला कुचैला चलेगा, लेकिन जाली नोट नहीं चलेगा। बस समझ लो, नोट नोट है पर जाली नोट नहीं होना चाहिए। तुम विशेष परिषह सहन करने में समर्थ नहीं हो, चलेगा; लेकिन अपनी मूलभूत चर्या में यदि शिथिलता ले आओगे तो कभी नहीं चलेगा।

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