मन्दिर में चढ़ा हुआ चावल, मंदिर में रहने वाला माली खाता है, तो क्या उसको पाप नहीं लगता?
भगवान के चरणों में हम जो भी चढ़ाते हैं, उसे निर्माल्य की संज्ञा दी गई है। निर्माल्य द्रव्य का उपभोग नहीं करना चाहिए और जैन लोग इसका उपभोग नहीं करते, माली के लिए दे देते हैं। प्रश्न बिल्कुल यथार्थ है, सब को दोष लगता है, तो माली को भी लगेगा। एक परम्परा समाज में बन गयी है, चढ़े हुए चावल माली के लिए देने की। यथार्थतः भगवान की सेवा करने वाले माली को अच्छी पगार देना चाहिए ताकि वो भगवान की अच्छे से सेवा कर सकें। वास्तव में इस द्रव्य सामग्री का सही प्रयोग पशु- पक्षियों के लिए करना चाहिए।
सबसे उत्तम तो ये है कि देश भर की जैन समाज ये निर्णय ले और अपने यहाँ चढ़े हुए द्रव्य को गौशाला में भेजना शुरू कर दे। लाखों गायों की रक्षा हो जायेगी, पक्षियों को दाना देना शुरू कर दें, इसलिए ये बहुत अच्छा रहेगा और ऐसा ही करना चाहिए। वर्तमान व्यवस्था दोषप्रद तो है ही, कमेटी को भी दोष लगेगा। जब माली को रखते हुए कहेंगे कि ‘महीने में पाँच किलो बादाम चढ़ता है’, तो तुमने अपने बादाम के दाम निकाल लिए। नहीं! आप माली को पगार दीजिए और एक नई शुरूआत कीजिये। ये सारी द्रव्य सामग्री गौशाला में जाये, जीव दया का एक अनुपम अनुष्ठान उससे होगा। आपको दोहरा पुण्य प्राप्त होगा।
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