हमारे साथ कुछ भी घटित होता है तो कहा जाता है कि वह हमारे कर्मों का फल होता है। वर्तमान में 6 महीने की बच्ची हो या 16 साल की युवती, उनके साथ जो दुष्कर्म हो रहें हैं क्या वे उनके किसी कर्म का फल होता है?
एक है कर्म, एक है नोकर्म। कर्म का उदय तो सबको होता ही है लेकिन उस कर्म के उदय को उभारने में निमित्त बनता है नोकर्म। नोकर्म अर्थात निमित्त।
अभी आप सुरक्षित हैं, आपके कर्मों का उदय शान्त हैं। अब रात 12:00 बजे अन्धेरे में किसी गली में आप अकेली चली जाओ और कोई शराबी युवक उधर से घूम रहा है, तो आप उसके लिए नोकर्म बन जाएंगे और उसकी शराबी हालत आपके कर्म की उद्दीरणा में नोकर्म बन जाएगी। जो कर्म आपके उदय में नहीं आने वाला है वह भी उदय में आ जाएगा। इस नोकर्म का मतलब है परिवेश। आज का परिवेश इतना गंदा हो गया है जो कर्म को असमय में उत्पन्न कर देता है और व्यक्ति के सामने ऐसी जटिलतायें ले आता है। इसलिए हमें ऐसे निमित्तों से अपने आपको हमेशा बचा के रखना चाहिए।
Leave a Reply