क्या विदेह क्षेत्र में भी जिन चैत्यालय होते हैं?

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शंका

विदेह क्षेत्र में सीमन्धर स्वामी का समवसरण विचरण करता रहता है। क्या वहाँ पर भी भरत क्षेत्र जैसे चैत्यालय हैं, और वहाँ पूजा और अभिषेक की वैसी ही व्यवस्था भी है?

समाधान

श्रावकों के लिए दान, पूजा, शील, उपवास धर्म बताया है और भरत क्षेत्र में जिन मन्दिरों के निर्माण आदि के विषय में शास्त्रों में मिलता है। तीर्थंकर आदिनाथ के गर्भावतरण से पूर्व इन्द्र के द्वारा अयोध्या नगरी में जिनालयों की बात मिलती है। भरत चक्रवर्ती के द्वारा भगवान आदिनाथ के युग में ही कैलास पर्वत पर जिनालय बनाने का उल्लेख मिलता है। सागर पूर्वों द्वारा उन जिनालयों के जीर्णोद्धार और सुरक्षा के लिए गंगा को खाई खोदकर प्रवाहित करने का भी उल्लेख मिलता है। तो चतुर्थ काल में भरत क्षेत्र में तीर्थंकरों के विहार काल में भी अनेक-अनेक ऐसे प्रसंग मिलते हैं कि उस काल में, श्रावक जनों ने जिनालयों की स्थापना की और जिनमंदिर बनाए और वहाँ पूजा अर्चा करते रहे उससे अपने श्रावक धर्म का पालन करते हैं। तो इस आधार पर मैं ये कह सकता हूँ कि विदेह क्षेत्र में भी साक्षात् सीमन्धर आदि के होते हुए भी उन्हें जिन भगवान की पूजा के लिए जिनालयों का लाभ मिलता होगा। 

वहाँ श्रावक अपने द्रव्य का सदुपयोग करने के लिए जिनालयों का निर्माण निश्चित रूप से करते होंगे और चैत्य वृक्षों के माध्यम से भी वह दर्शन-वंदन तो निश्चित रूप से करते होंगे। लेकिन एकदम स्पष्ट विधान अभी तक मेरे देखने में नहीं आया कि विदेह क्षेत्र में भी किसी ने जिनालयों का निर्माण कराया। लेकिन इसमें मुझे कुछ भी गलत नहीं दिखता थोड़ा शोध करना चाहिए पुराण पुरुषों के चरित्र को पलट कर देखना चाहिए, और ये देखना चाहिए कि कोई पुराण पुरुष जो अतीत में विदेह में रहे हों और विदेह में उन्होंने अपनी जीवन चर्या बिताई और वहाँ जिनेद्र भगवान के मन्दिर में जाकर पूजा अर्चा की या नहीं? अगर उनके चरित्र को पढ़ेंगे तो निश्चित ये प्रमाण मिल जायेगा। पर अभी यहाँ बैठकर मेरे मन में जो बात आ रही है वह यह है कि जो चतुर्थकाल की व्यवस्था भरत क्षेत्र में होती है वही व्यवस्था विदेह क्षेत्र में होती है, ऐसा आगम का विधान है। तो ये बात अच्छी तरीके से कही जा सकती है। जब भरत क्षेत्र में तीर्थंकरों के युग में जिनालयों का निर्माण होता है, तो विदेह क्षेत्र में जिन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा और जिनालयों के निर्माण में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए।

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