भूत होते हैं क्या? यदि होते हैं तो क्या उनसे डरना चाहिए?
भूत होता है! और पता है कहाँ होता है? आदमी के मन में! मन का भूत सबसे बड़ा भूत होता है और दुनिया के भूत-प्रेत उन्हें ही सताते हैं, जिनका मन दुर्बल होता है।
आगम में यद्यपि भूत-प्रेत आदि का उल्लेख आता है, उसमें उनका निषेध नहीं है लेकिन ये सब कमजोर मनोबल से जुड़े लोगों को ही सताता है। मेरे सामने इससे सम्बन्धित जितने भी प्रसंग आए हैं, प्रायः सबके सब मानसिक विकृति के परिणाम के रूप में दिखे है। इसलिए मेरा तो इन पर राई रत्ती भी विश्वास नहीं है। मैं एक उदाहरण आपको दूँ- पिंडरई में पंचकल्याणक हुआ। पंचकल्याणक प्रतिष्ठा बहुत सानंद तरीके से सम्पन्न हुआ। वहाँ पर कार्यक्रम में जो पंचकल्याणक का चबूतरा बना था, उस पर कुछ पत्थर आदि लगे थे। एक भाई का उसका कुछ पेमेन्ट बाकी था, उसे समिति से पेमेन्ट लेना था। पेमेन्ट में थोड़ा लेट हुआ तो उसने जाकर वहाँ से कुछ पत्थर उठा लिए और उसी दिन से एब्नॉर्मल (Abnormal) हो गया। उल्टा-पुल्टा बोलना शुरू कर दिया। घर के लोगों ने सोचा कि इसको कुछ ऊपरी चक्कर हो गया है। गाँव के लोग लगे और वहाँ के जो तांत्रिक आदि थे उनको दिखाया, झाड़-फूँक हुआ, कोई असर नहीं हो रहा था। मैं उन दिनों शहपुरा भिटौनी में था, वे लोग समाज के कुछ लोगों के साथ मेरे पास आए, वह मेरे पास आकर बैठा। मैंने सबको अलग किया और उससे वार्तालाप शुरू की; वह बोला ‘महाराज! आदिनाथ सिद्ध हो गए, हमारी उनसे डायरेक्ट बात होती है!’ मैं समझ गया। मैंने उसको और उसके परिवार के लोगों को समझाया, उसको तो समझाने की स्थिति थी नहीं, उसे देखते ही समझ में आया कि कोई भूत नहीं है। ये मानसिक बीमारी है। गर्मी का समय था, ठीक ढंग से सोया नहीं था, गर्मी बढ़ गई थी और दिमाग में वो बात चढ़ गई थी, थोड़ी टेंशन भी थी। मैंने कहा कि ‘इसको आप डॉक्टर को दिखाओ, और जो पत्थर वहाँ से उठा लिया है, उस पत्थर को जहाँ का तहाँ लगाओ, शांति विधान करो और किसी अच्छे साइकेट्रिक से अपना ट्रीटमेंट लो।’ जबलपुर में डॉक्टर प्रदीप जुहैल थे, उन्होंने उनको दिखाया। ये सन् १९९६ की बात है। डॉ. जुहैल को दिखाया १५ दिन में आराम हो गया। आज वह पूरी तरह ठीक है। मेरे पास आ गया सही दिशा मिल गई तो ठीक हो गया, नहीं तो पता नहीं किन-किन के चक्कर में आ जाता और कितने भूत उतरते रहते। इसलिए इन भूत-वूत के चक्कर में मत पड़ो।
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