कुछ लोग णमोकार मन्त्र की उल्टी जाप भी देते हैं तो क्या यह उचित है?
अजय बेनारा, आगरा
णमोकार मन्त्र की ही ऐसी कुछ विशेषता है। इसकी कोई आनुपूर्वी नहीं है। इसका कोई क्रम नहीं है।
णमोकार मन्त्र विश्व का इकलौता ऐसा मन्त्र है, जिसकी चार मौलिक विशेषताएँ है। सबसे पहली विशेषता कि इसमें कोई देवता नहीं है; अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, यह अवस्था है, देवत्व नहीं, व्यक्ति नहीं।,
दूसरा इसमें कोई बीजाक्षर नहीं।
तीसरी विशेषता इसकी कोई आनुपूर्वी भी नहीं। सीधा पढ़ो, उल्टा पढ़ो, पीछे से पढ़ो, आगे से पढ़ो। अन्य किसी मन्त्र को उल्टा पढ़ोगे तो उल्टा असर हो जाएगा। णमोकार मन्त्र के साथ ऐसा नहीं।
चौथी विशेषता- सम्पूर्ण मन्त्र भी अपने आप में मन्त्र है। इस मन्त्र का एक पद भी अपने आप में मन्त्र है। एक पद तो जाने दीजिए, इस मन्त्र का एक अक्षर भी अपने आप में मन्त्र हैं। ‘नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं….’ बोलो तो मन्त्र, अगर कोई भी पद बोल दो तो मन्त्र है। बाकी छोड़ो, अरिहंत कहो तो मन्त्र है, सिद्ध कहो तो मन्त्र है, आचार्य कहो तो मन्त्र! यह इतना कहने की बात भी छोड़ो, ‘अ सि आ ऊ सा’ कह दें तो मन्त्र है। इतना भी कहने की जरूरत नहीं, अरिहंत का “अ” जप लो तो भी मन्त्र है। ऐसा कोई दूसरा मन्त्र नहीं इसलिए णमोकार मन्त्र को सर्वश्रेष्ठ मन्त्र के रूप में जाना जाता है।
Leave a Reply