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42वें भक्तामर श्लोक का अर्थ क्या है?

42वें भक्तामर श्लोक का अर्थ क्या है? शंका भक्तामर स्तोत्र जो मांगतुंग आचार्य द्वारा रचित है उसका यह काव्य:- वल्गत्तुरंग-गज-गर्जित-भीम-नाद- माजौ बलं बलवतामपि भूपतीनाम्। उद्यद्-दिवाकर-मयूख-शिखा-पविद्धं, त्वत्कीर्त्तनात्-तम इवाशु भिदा-मुपैति ॥ जिसमें…

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हमारे यहाँ आहार हो ही नहीं सकता इस नकारात्मकता को कैसे दूर करें?

हमारे यहाँ आहार हो ही नहीं सकता इस नकारात्मकता को कैसे दूर करें? शंका हमारे यहाँ महाराज का आहार तो हो ही नहीं सकता। हमारे कर्म ही ऐसे हैं। इस…

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द्रव्य श्रुत से भाव श्रुत की प्राप्ति करने के लिए क्या पुरुषार्थ करना चाहिए?

द्रव्य श्रुत से भाव श्रुत की प्राप्ति करने के लिए क्या पुरुषार्थ करना चाहिए? शंका द्रव्य श्रुत से भाव श्रुत की प्राप्ति करने के लिए हम अज्ञानी जीवों को क्या…

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हम ऐसा कौन-सा काम करें कि शुभ और अशुभ कर्म से परे हो जाये?

हम ऐसा कौन-सा काम करें कि शुभ और अशुभ कर्म से परे हो जाये? शंका अशुभ कर्म करने से कर्म बनते हैं और शुभ कर्म करने से भी कर्म बनते…

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मंदिर से बचे हुए चावल का क्या करे?

मंदिर से बचे हुए चावल का क्या करे? शंका रोज मन्दिर में लगी हुई थाली से पूजन करती हूँ, भगवान की हर वेदी पर दर्शन करने के बाद भी डिब्बी…

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