42वें भक्तामर श्लोक का अर्थ क्या है?
42वें भक्तामर श्लोक का अर्थ क्या है? शंका भक्तामर स्तोत्र जो मांगतुंग आचार्य द्वारा रचित है उसका यह काव्य:- वल्गत्तुरंग-गज-गर्जित-भीम-नाद- माजौ बलं बलवतामपि भूपतीनाम्। उद्यद्-दिवाकर-मयूख-शिखा-पविद्धं, त्वत्कीर्त्तनात्-तम इवाशु भिदा-मुपैति ॥ जिसमें…
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