भावना योग में सिर्फ “सोहम” शब्द का महत्त्व है या इसके साथ जो नाद है जिसमें सभी एक साथ बोल रहे थे, उसका भी कुछ अर्थ है।
भावना योग के पीछे का जो मूल सिद्धान्त है उसमें हम जो देखते हैं, जो सुनते हैं, जो बोलते हैं या जो सोचते हैं उन सब का प्रभाव हमारे सबकॉन्शियस माइंड पर पड़ता है। और जब वह हमारे सबकॉन्शियस माइंड पर गहरा हो जाता है, तो वही हमारे कॉन्शियस माइंड के माध्यम से प्रकट होता है, आज मनोविज्ञान के पंडित ऐसी बात करते हैं। हमारे यहाँ कहा गया है कि तुम जो पाना चाहते हो उसकी भावना भाओ। तो बिना आलम्बन के भावना भाने में लोगों को अधिक एकाग्रता की जरूरत पड़ती है। ध्यान की गहराई में हर कोई नहीं डूब पाता, उसमें कंसंट्रेशन चाहिए। इसलिए मैंने भावना योग में विधा विकसित कर दी। तुम दीर्घ नाद करोगे तो भी तुम्हारे मन मस्तिष्क में वह बात जाएगी इसमें तुम एकाग्र होकर बोले तो और बिना एकाग्र होकर बोले तो भी दिमाग में टेप होना ही है और वो रिकॉर्ड का प्रभाव होगा। यह एक बहुत ही लाभकारी प्रक्रिया है।
हम लोगों की एक विडम्बना है कि इतनी अच्छी साधना हमारे यहाँ युग-युगांतरों से चली आ रही हैं और हमने उसकी व्याख्या नहीं की, उसे ठीक तरीके से समझा नहीं। यदि इसे ठीक तरीके से अपना लिया जाए तो जन -जन के जीवन की जितनी भी मानसिक और भौतिक समस्याएँ हैं, उनसे तत्क्षण निजात प्राप्त कर सकते है और इससे बहुत अच्छा लाभ होता है, इसका बहुत गहरा प्रभाव है।
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