हैदराबाद गुरुकुल में वर्तमान में एक सौ बीस छात्र अंग्रेजी माध्यम से अध्ययन कर रहे हैं, जिनमें कुछ छात्र सी.ए., सी.एस, एम.बी.ए, एम.सी.ए, के साथ आई.ए.एस. व आई.पी.एस. की तैयारी कर रहे हैं। हमारा प्रश्न है कि न्याय के कौन से ऐसे ग्रन्थ हैं, जिन ग्रन्थों को हम अपने गुरुकुल में छात्रों को पढ़ाएं, जिससे आगे चलकर के जो छात्र है एलएलबी आदि करना चाहते हैं, वे छात्र जब हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट में जाकर के वकील बन कर के अपनी वकालत करें तब उस जगह पर अपने जैन धर्म को समझते हुए, जैन संस्कृति को समझते हुए, भविष्य में कभी ऐसी कोई परेशानी आती है, तो उनको अच्छे तरीके से वहाँ पर प्रस्तुत कर सके।
सबसे पहले बाबूलाल जी के इस कृत्य की सराहना करता हूँ, जिन्होंने हैदराबाद जैसी जगह में सांगानेर का अनुकरण करते हुए, नए स्वरूप में गुरुकुल की स्थापना की। जैसी मुझे जानकारी है, पिछले लगभग बारह सालों से गुरुकुल विधिवत चल रहा है। आज भी उनके मन में अच्छी भावना रहती है, किस तरह की व्यवस्था चले! मैं अनेक बच्चों से मिला हूँ। ये बच्चें वहाँ जाकर बहुत खुश हैं, इनके भविष्य का निर्माण हो रहा है। समाज को इस तरह के उपक्रम अपने हाथ में लेना चाहिए, ताकि जैन धर्म की स्थाई प्रभावना हो सके।
आपने न्याय के विषयों की बात की; बेरिस्टर चंपक राय की एक पुस्तक है, “जैन लाॅ (Jain Law)” उसका हिन्दी अनुवाद भी छ्पा है “जैन कानून”, जिसमें उन्होंने समस्त जैन धार्मिक धर्म शास्त्रों से जैन प्रक्रिया के अनुसार जो विधि प्रक्रिया है, उसको स्वीकारा है। उसको बहुत अच्छे तरीके से उन्होंने लिखा। भारतीय दंड संहिता में आज भी बहुत सारी चीजें ऐसी हैं, जो हिंदू लॉ के अन्तर्गत नहीं थीं लेकिन जैन धर्म शास्त्रों में हैं, जैसे बेटे के समान बेटी को समान अधिकार देने की बात हमारा आदि पुराण करता है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है, तो यह हमारी एक विशेषता है। चूंकि जैन लाॅ से जैनों को अलग से, मुस्लिम पर्सनल लॉ की तरह कोई लाभ नहीं मिला, हिंदू एक्ट के अन्तर्गत ही सारा कार्य होता है, इस कारण ऐसी स्थिति बनती है। लेकिन यदि धर्म के विषय में इस तरह की आपत्ति आती रहे तो उससे बचने के लिए समाज को उसके लिए भी कोई अभियान छेड़ना पड़ेगा ताकि हमारा धर्म, हमारी संस्कृति, हमारी परम्परा सुरक्षित रहे।
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