‘मन के जीते जीत, मन के हारे हार’ ऐसा क्यों? एक जीव तपस्या से ऊपर उठ जाता है और एक जीव धरातल पर निगोदिया ही बन जाता है, ऐसा क्यों?
इसी में तो आपकी बात का उत्तर है, जिसका मन स्ट्रांग (सशक्त) होता है वह शिखर पर चले जाता है और जिसका मन दुर्बल होता है, वह धरातल में पहुँच जाता है। मन के जीते जीत है, मन के हारे हार, सारा खेल मन के ऊपर ही है। हमारे नीतिकारों ने बहुत पुराने समय में ये बात लिखी कि
“बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं मन:।
मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयो:।।”
विषयासक्त मन बन्धन का कारण है और निर्विषय या विषयातीत मन मुक्ति का कारण है। सच्चे अर्थों में मन ही मनुष्य के बन्ध और मोक्ष का कारण है। ये मन है, मन को यदि हमने मजबूत रखा तो जीवन आगे बढ़ेगा। वस्तुतः हमारे जीवन का उत्थान या पतन मन के ऊपर ही निर्भर करता है।
एक बार एक जगह मेला लगा था, वहाँ गुब्बारे बेचने वाला गुब्बारे बेच रहा था और उन गुब्बारों में अनेक प्रकार के गुब्बारे थे – लाल, पीले, नीले और काले रंग के भी गुब्बारे थे। एक छोटे बच्चे ने गुब्बारे बेचने वाले को देखा और उससे पूछा कि यह जितने गुब्बारे हैं, सब आसमान में उड़ेगें! वो बोला ‘हाँ, सभी गुब्बारे आसमान में उड़ते हैं।’ ‘अच्छा यह काले रंग के गुब्बारे भी उतनी ऊँचाई पर उड़ते हैं?’ वो बच्चा इसलिए पूछ रहा था क्योंकि उसका रंग कुछ काला था, वह बदसूरत था और जब उसने देखा कि लाल, पीले, नीले सब गुब्बारों की तरह ये काला गुब्बारा भी उड़ता है, उड़ सकता है, तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि काला गुब्बारा भी उड़ सकता है। तब गुब्बारे वाले ने कहा कि ‘भैया, गुब्बारे की उड़ान गुब्बारे के रंग के कारण नहीं, उसके भीतर भरी हुई गैस की तरंग के कारण होती है। गुब्बारे अपने भीतर भरी गैस के कारण उड़ते हैं। जिस गुब्बारे में गैस भर दी जाएगी, वह गुब्बारा आसमान तक पहुँच जाएगा।
मैं भी आप से कहता हूँ, मनुष्य के जीवन के उत्थान में उसका यह बाहरी रूप कारण नहीं होता, भीतरी विचार जो उसे ऊँचाई तक पहुँचा सकते हैं, वह कारण बनते हैं। इसलिए अपने विचार और अपने भावों को ठीक रखो। विचार और भाव तभी ठीक हो सकते हैं जब मनुष्य का मन परिष्कृत हो, शुद्ध हो।
Leave a Reply