ऐसा कहा जाता है कि मुर्ग़ी ६ महीने की होने के बाद हर एक या डेढ़ दिन में अण्डे देती है, भले वह किसी मुर्गे के संपर्क में आए या नहीं। इन अण्डों को ही unfertilized egg कहा जाता है। इनसे कभी चूज़े नहीं निकल सकते। ऐसे अण्डों को आजकल शाकाहारी बता करके बेचा जा रहा हैं? ऐसे में हमको क्या करना चाहिए?
कोई भी अण्डा शाकाहारी नहीं होता। आपने किसी पेड़ पर अण्डा उगते देखा है? ये एक छलावा है- चाहे निछेदित हो, चाहे fertilized हो या non-fertilized, अण्डा तो अण्डा है। अण्डा शाकाहारी नहीं, मुर्गी के जिगर का टुकड़ा है। अगर आप इसे समझना चाहें तो किसी सद्य-प्रसूत माँ के सामने से उसकी इच्छा के विरुद्ध उसके बच्चे को अलग कर के देखें। फिर सोचें उस माँ के ऊपर क्या बीतती है! कितनी वेदना होती है, कितनी पीड़ा होती है उस माँ के मन में! हमें इन सब बातों को बहुत गम्भीरता से समझ करके चलना चाहिए।
अण्डा शाकाहारी नहीं है, इसको यन्त्रों के माध्यम से इस पर स्पष्टतया ज्ञान दिया गया है, कि दोनों प्रकार के अण्डों का माँ के साथ अपना संवाद जुड़ा होता है। इसलिए प्रश्न चूज़े के निकलने या न निकलने का नहीं है। ये तो भावनात्मक रूप से समझने की बात है। यह भ्रम है और लोगों को इस तरीके से भ्रमित करने का कुप्रयास है। इसके विषय में कई बार यह बात प्रकाशित हो चुकी है कि कोई भी अण्डा किसी भी हालत में शाकाहारी नहीं हो सकता। हमें ऐसे भ्रम में कभी नहीं फसना चाहिए। मैं कहूँगा ‘अण्डा शाकाहार नहीं’ – डॉ. नेमिचन्द्र जैन इंदौर वालों की एक कृति है आप लोग उसे ज़रूर पढ़ें।
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