जब बच्चा स्केटिंग सीखता तो कई बार गिरता है, चढ़ता है, फिर संभलता है, किन्तु एक दिन ऐसा आता है कि उसके पहियों पर नियंत्रण साध कर इतना आगे बढ़ जाता है कि उसका गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम आ जाता है। उसी तरीके से व्यक्ति के भी अपने जीवन में कई बार उतार-चढ़ाव आता है, गिरता है, संभलता है किन्तु फिर भी अपने जीवन में निराश हो जाता है। तो क्या व्यक्ति अपने धर्मरूपी जीवन में नियंत्रण साधकर, स्वर्ण सोपान रूपी कदम चढ़कर, धर्म पताका नहीं फहरा सकता या वह सफलता नहीं पा सकता? धर्मरूपी पहिए कौन-कौन से हैं, कृपया मार्गदर्शन दीजिए?
यह बात सही है, जो गिरता है, वही चढ़ता है। असफलता में ही सफलता का राज छुपा होता है। जो अपनी असफलताओं से हार जाता है, वो जीवन में कभी अपना उद्धार नहीं कर पाता। हम हारें पर कभी हार न माने। हारना बुरा नहीं है, पर हार मान जाना बुरा है।
धर्म साधना एक अभ्यास है और धर्म क्षेत्र में चलने वाले लोग भी बहुत चढ़ते-उतरते हैं। शास्त्रीय भाषा में बात करें तो 11वें गुण स्थान तक जा के भी निगोद में जाया जा सकता। 11वें गुणस्थान में जाने वाला साधक स्खलित हो जाता है, नीचे आ जाता है, और अपना पतन करके, उसकी आत्मा भ्रष्ट होती है, तो निगोद में भी चला जाता है और एक-दो भव के लिए नहीं, असंख्य भव के लिए, शास्त्र की भाषा में अर्ध पुद्गल परावर्तन काल तक। यह एक स्वभाविक प्रक्रिया है। लेकिन अगर हम एक बार गिरें और गिरते रहें तो हमारे जीवन की उन्नति कभी नहीं होगी। गिरने के बाद यदि उठकर के हम फिर चलना शुरू कर दें तो जरूर पहुँच सकते हैं। इसलिए कभी हम गिरें तो अपने आप को गिरा हुआ महसूस न करें। यह सोचें हम गिरे हैं, अब हमें उठना है और आगे बढ़ना है, यह लक्ष्य लेकर चलेंगे तो निश्चित सफलता मिलेगी।
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