अगर “जो होना है वह निश्चित है और केवलज्ञानी ने गाया है” तो क्या किसी के श्राप या आशीर्वाद से किसी का भला-बुरा हो सकता है?
अक्षत मोदी, नागपूर
जो होना है वह निश्चित है केवलज्ञानी ने गाया है ऐसा कहना सर्वथा ठीक नहीं है क्योंकि यदि हम इसी अवधारणा में जीते हैं तो एक ही प्रश्न होगा और एक ही उत्तर कि “ऐसा क्यों हुआ, क्योंकि ऐसा ही होना था और ऐसा क्यों नहीं हुआ क्योंकि नहीं होना था।” भगवान ने हमें यह उपदेश नहीं दिया कि जो जब जैसा होना है, मेरे ज्ञान में झलक रहा है, तो किसी भी बात की चिन्ता मत कर। भगवान ने ऐसा उत्तर नहीं दिया। भगवान ने यही कहा कि- क्रमानुक्रमविधायित्वात् कार्यक्रमानुक्रमस्य – कार्य का क्रमानुक्रम कारण के क्रमानुक्रम पर निर्भर करता है। जैसी कारण सामग्री होती है वैसा कार्य होता है, तुम अच्छी कारण सामग्री के साथ चलोगे तो अच्छे कार्य होंगे, ऐसा सोचना ठीक नहीं है।
रहा सवाल किसी के श्राप और वरदान का प्रभाव, तो किसी का श्राप और वरदान भी हम पर तब तक प्रभाव नहीं डालता जब तक तदनुरूप कर्म हमारे पास नहीं होता। इस बात को हमें स्वीकार करना चाहिए। मैं इसे मानता भी हूँ और नहीं भी मानता हूँ। मैं उसे इस सन्दर्भ मानता हूँ कि जब हमारे मन में कोई उलझन आती है और कुछ निर्णय लेने की स्थिति नहीं होती, दुविधापूर्ण स्थिति होती है, तो उस समय यह मानना चाहिए कि ‘जो होना है सो होगा।’ अगर कुछ अघट घट जाए, मन अधीर हो जाएँ तो अपने चित्त के समाधान के लिए ये भावना भानी चाहिए कि ‘यही होना था, जो होना था सो हुआ’, लेकिन जब हम किसी कार्य के लिए प्रवृत्त हों तब ऐसा सोचना कतई उचित नहीं है कि जो होना होगा सो होगा। उस समय यह सोचें- हम जैसा करेंगे वैसा ही परिणाम आएगा। इसलिए मैं अच्छे से अच्छा करूँ ताकि अच्छा परिणाम निकले।
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