मैंने मेरे बाबा को १९७० से १९९६ तक देखा था, उनके पास चेंपें के रोगी आते थे। चेंपा मुँह के नीचे होता था और फैलता चला जाता था। वो एक दीपक से उनकी आरती उतारा करते थे और वह रोग ठीक हो जाता था। एक दिन मैंने उनसे पूछा- ‘बाबा आप क्या बोलते हो?’ उन्होंने कहा ‘मैं तो णमोकार मन्त्र बोल देता हूँ और उसी से ठीक हो जाता है।’ महाराज जी हम भी क्या इसी प्रकार से णमोकार मन्त्र बोलकर किसी का रोग ठीक कर सकते हैं?
अगर तुम्हारे अन्दर इतनी श्रद्धा हो तो तुम जरूर कर सकते हो। एक प्रसंग बताता हूँ, मैं सम्मेद शिखरजी की वन्दना कर रहा था, सन २००९ की बात है। मैंने अपनी वन्दना पारसनाथ टोंक से शुरू की थी और चंद्रप्रभु टोंक से लौट रहा था। एक परिवार था वह चंद्रप्रभु टोंक की ओर जा रहा था। उनके साथ एक १४-१५ साल का बच्चा था, उसके पेट में बहुत जोर से दर्द हो रहा था, पूरा का पूरा परिवार परेशान। मुझसे कहा ‘महाराज जी इसको बहुत दर्द हो रहा है, आप आशीर्वाद दीजिए, कुछ ऐसा बताइए कि हम लोगों की वन्दना हो जाए, हम जीवन में पहली बार वन्दना कर रहे हैं। दर्द की तकलीफ तो थी ही, इस बात की भी तकलीफ थी कि कहीं हमारी वन्दना अधूरी न रह जाए। ११:०० बज रहे हैं और विलम्ब न हो जाए, मैं क्या करूँ?’ वहीं एक स्टाल था, वहाँ से एक डिस्पोजल ग्लास लिया, उसमें मैंने अपने कमंडल का पानी भरवाया और णमोकार मन्त्र पढ़ा और बोला इसको पिला दो। णमोकार मन्त्र पिलाया और उसका दर्द छूमंतर हो गया। इससे पहले मैंने कभी इस तरीके का कोई प्रयोग नहीं किया था, उसके भाग्य से मेरे मन में ऐसा भाव हो गया। लेकिन यह पहला प्रयोग था और शायद आखिरी प्रयोग, उसके बाद मैंने कभी प्रयोग किया भी नहीं, उसके निमित्त से ऐसा हो गया और वो ठीक हो गया।
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