क्या राष्ट्र-प्रेम और राष्ट्रीय चरित्र का विकास मानव धर्म के पालन से हो सकता है?
निश्चित! राष्ट्र प्रेम और राष्ट्रीय चरित्र का विकास हो सकता है। राष्ट्र का निर्माण कब हो सकता है? जब मनुष्य का निर्माण हो। मनुष्य के निर्माण में ही राष्ट्र का निर्माण है। आपके प्रश्न का उत्तर मैं एक प्रसंग सुनाकर दे रहा हूँ, और मैं समझता हूँ कि इस प्रसंग से आपके प्रश्न का उत्तर मिल सकता है।
विनोबा भावे जी के पास विश्वविद्यालय के कुछ छात्र राष्ट्र निर्माण का सूत्र पाने की इच्छा से पहुँचे। विनोबा जी ने कहा कि ‘मैं तुम्हें निर्माण का सूत्र दूँगा। एक काम करो मेरे पास ये कुछ पासे हैं इन पासों को जोड़ो। इससे भारत का नक्शा बनेगा। जब तुम भारत का नक्शा बना दोगे तो मैं तुम्हें बताऊँगा कि राष्ट्र निर्माण का सूत्र क्या है।’ अब हिन्दुस्तान का नक्शा है ही कठिन, लकड़ी के पासों से नक्शा कैसे बनाएँ? बच्चे लग गए, एक बच्चे ने उसे पलट कर देखा तो उसमें हमारे शरीर के कुछ अंग दिखाई पड़े। एक को पलटा, दूसरे को पलटा, तीसरे को पलटा….. सब में कोई न कोई अंग थे। किसी में पाँव, किसी में घुटने, किसी में जांघ, किसी में हाथ की अंगुलियाँ’ किसी में हाथ, किसी में छाती, किसी में पेट व किसी में पीठ, तो उसने क्या किया कि सब को पलट दिया। और हमारे शरीर के जो अंग थे उसे उन अंगों से मिलाना शुरू कर दिया। जब सारे शरीर के अंगों को अंगों से मिला दिया तो देखता क्या है कि भारत का नक्शा तैयार हो गया। पलटा तो दूसरे तरफ भारत का नक्शा था। जब ये देखा तो विनावा जी ने कहा कि ‘यही है हमारा संदेश। इंसान का निर्माण कर दो राष्ट्र का निर्माण अपने आप हो जायेगा। तो व्यक्ति के चरित्र के निर्माण से ही राष्ट्र के चरित्र का निर्माण होता है।’
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