क्या पुरानी उपेक्षित प्रतिमाओं को नए मंदिर में प्रतिष्ठित किया जा सकता है?

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शंका

अनेक जगह पंच कल्याणक कराये जाते हैं, सैकड़ों जिन बिंब को प्रतिष्ठित किया जाता है। हमारे देश में हजारों प्रतिमायें ऐसे मन्दिरों में हैं जहाँ उनकी पूजन प्रक्षाल की कोई व्यवस्था नहीं। तो क्या आप मुनियों द्वारा पुरानी प्रतिमाओं को नई मन्दिर के प्रतिष्ठा में स्थापित नहीं किया जा सकता?

समाधान

आपका सुझाव बहुत अच्छा है पर व्यावहारिक नहीं। व्यावहारिक इसलिए नहीं कि जिन मन्दिरों में श्रीजी विराजमान है वहाँ लोगों की आस्थाएँ जुड़ी होती हें और प्रायः कोई देना नहीं चाहता। एक किस्सा मैं बता रहा हूँ। मैं एक गाँव में था, जहाँ तीन मन्दिर थे और चार घर की समाज थी। विहार करते हुए जा रहा था, रास्ते में दर्शन किए, शांतिनाथ भगवान की सवा ३ फुट की अति मनोज्ञ प्रतिमा थी। चार घर की समाज, तीन मन्दिर, ढंग से पूजा प्रक्षाल करने की कोई व्यवस्था नहीं। मैं दर्शन करते-करते बोला “भैया, तुम लोगों ने इतने विशाल मन्दिर में इतने भव्य श्रीजी को यहाँ रखा है, खुद पूजा प्रक्षाल नहीं कर सकते हो, तुम कहो तो बगल में एक मन्दिर बन रहा है, वहाँ पधरा दें ?  मेरा वाक्य पूरा नहीं हुआ और सामने वाला उखड़ गया। “मैं अपनी आखिरी सांस तक बाबा को नहीं जाने दूँगा, आखिरी सांस तक बाबा की सेवा करूँगा।” एक तो लोगों के कुछ सेंटीमेंट्स जुड़े रहते हैं, उसके कारण लोग देना नहीं चाहते। 

दूसरी बात कई प्राचीन प्रतिमाएँ ऐसी हैं जिनमें कोई न कोई दोष है। दोष युक्त प्रतिमा को मन्दिर के मूल नायक के रूप में विराजमान करने से ठीक नहीं रहता, इसलिए नए निर्माण के साथ नई जिन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा होती रहनी चाहिए, इसमें कोई दोष नहीं। इससे हमारा इतिहास भी सुरक्षित होता है। लेकिन हाँ समाज के लोगों से मैं कहता हूँ कि अगर कहीं श्रीजी की सेवा पूजा नहीं हो रही है, तो आसपास के मन्दिर में वेदियों को पधार सकते हैं, उनके लिए एक स्वतंत्र व्यवस्था बनाई जा सकती है। हालाँकि ऐसा करने से एक दोष यह भी होता हैं कि मन्दिर उजड़ जाता है, उस मन्दिर का क्या होगा? हम लोग अपना नाम मन्दिर बनाने वालों में लगायें, मन्दिर मिटाने वालों में नहीं। जब कोई परिस्थिति न हो तो उसका विधिवत् विसर्जन करने की बात अलग है, जिसका शास्त्रीय विधान है, उसके तहत यह सारा कुछ होना चाहिए। इसलिए यह सब जो बातें आप कर रहे हो, वह सुझाव में अच्छा है, व्यवहार में अच्छा नहीं है।

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