क्या भगवान् के माता-पिता बनने के बाद सौधर्म इन्द्र बन सकते हैं? चौबीस समवसरण विधान का महत्त्व!

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शंका

यहाँ चौबीस तीर्थंकर समवसरण की रचना होने जा रही है, लेकिन हम भगवान के माता पिता बन चुके हैं। क्या इस विधान में हम इंद्र-इन्द्राणी बन सकते हैं? और इस विधान का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है? कृपया प्रकाश डालने की कृपा करें?

समाधान

भगवान के माता-पिता बन चुके हैं इसका मतलब ये नहीं कि आप भगवान की पूजा-अर्चना नहीं कर सकते हैं। माता-पिता पंचकल्याणक के लिए बने थे, permanent नहीं बने थे। यदि ऐसा है तो भगवान के माता-पिता जब आप बन गये हो तो अपने आपको केवल भगवान के माता-पिता बनाओ और किसी को माता-पिता मत मानो! अपने घर गृहस्थी के काम करते हो, जब कोई शादी विवाह होता है तब जाते हो या नहीं जाते? शास्त्रों की दृष्टि से इसका कोई निषेध नहीं है। पंचकल्याणक के लिये माता-पिता बने वह एक पवित्र अनुष्ठान था। ऐसा सौभाग्य रखो कि कभी हमारे द्वारा किसी तीर्थंकर जैसे महापुरुष का जन्म हो और सारे संसार का उद्धार हो। ये तो एक शुभ भावना है, लेकिन किसी धार्मिक क्रिया में सहभागी होने का कोई निषेध नहीं कि ‘माता पिता बन गये तो सौधर्म इन्द्र नहीं बन सकते।’ अरे! माता-पिता बनने वाले या तो स्वर्ग जाते हैं या मोक्ष जाते हैं और यदि स्वर्ग जायेंगे तो हल्के-फुल्के देव थोड़े ही बनेंगे? अच्छे इन्द्र ही बनेंगे अगर तो सौधर्म इन्द्र बन जायें या उससे ऊपर भी बन जायें तो कोई बुराई नहीं। इसलिये ऐसा बनने में कोई बुराई नहीं है। अच्छे से बन सकते हैं। आपका मनोभाव है, तो अच्छे से बनिये। 

रहा सवाल इस विधान के महत्त्व का। बन्धुओं, पूजा विधान तो कोई भी हो सब विधान महत्त्वपूर्ण होते हैं, लेकिन चौबीस समवसरण की संरचना करके भगवान की पूजा आराधना करने का महत्त्व कुछ और ही हो जाता है। हमारे तीर्थ के प्रवर्तक चौबीस तीर्थंकर है। तीर्थंकरों का मूल स्वरूप समवसरण में ही सुसज्जित होता है, तो समवसरण में विराजमान करके एक साथ पूजा करने से हमारी विशुद्धि अनंतगुणी बढ़ती है। थोड़ी कल्पना करो जब दोनों ओर से समवसरण सजे हों एक साथ और भगवान की वेदी हो हर समवसरण में चार-चार चतुर्मुखी भगवान विराज -मान हों वो दृश्य क्या होगा? कल्पद्रुम पूजा चक्रवर्ती करता है समवसरण की रचना करके सर्वतोभद्र पूजा चक्रवर्ती करता है। समवसरण की रचना करके एक तीर्थंकर को पूजने का मौका तो यदा-कदा मिल जाता है लेकिन अपने मूल आराध्य चौबीस-चौबीस तीर्थंकर की पूजा की तो महिमा ही अलग है। एक बात ध्यान रखना जो एक बार भगवान के समवसरण का सभासद हो जाता है वह नियमित सम्यक् दृष्टि होता है और बहुत जल्दी मुक्ति को प्राप्त कर लेता है। तुम चौबीस समवसरण की पूजा करोगे तो निश्चित आज नहीं तो कल तुम्हें समवसरण में शरण मिलेगी और तुम्हारा बेड़ा पार होगा। ऐसे मौके को चूकना नहीं चाहिये।

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