वर्तमान में भक्तामर स्तोत्र का प्रयोग सांसारिक सुखों की प्राप्ति के लिए किया जा रहा है। यह कब से किया जा रहा है? क्यों किया जा रहा है? क्या भक्तामर स्तोत्र का पाठ करने से सांसारिक सुखों की प्राप्ति हो सकती है?
जब हम बीज बोते हैं, उससे फसल उगती है, उसके साथ घास- फूस भी स्वाभाविक रूप से आ जाती है। लेकिन बीज का व्यपन घास-फूस के लिए नहीं किया जाता है, फसल तैयार करने के लिए किया जाता है। तो हमारी दृष्टि फसल पर होनी चाहिए, घास फूस पर नहीं! वो तो उसका अनुषांगिक लाभ है।
आपने पूछा है कि भक्तामर स्तोत्र से क्या सांसारिक लाभ हो सकता है? भक्तामर का पहला शब्द ही भक्तामर के प्रभाव को प्रसिद्ध कर देता है। पहला-सदा भक्तामर यानी जो भगवान का भक्त होता है वह अमर हो जाता है इससे बड़ा लाभ और क्या है! भक्त अमर बन जाता है, जब तुम अमर बनोगे तो बाकी सब बातें तो अपने आप टल जाएँगी, उसके लिए सोचना क्या है? यह तो ऐसा है- जैसे पेड़ से जा कर कोई छाया मांगे। पेड़ के नीचे जाते ही छाया स्वतः बरसना शुरू कर देती है, छाया मांगने की आवश्यकता नहीं पड़ती। यह बहुत बाद के काल में बहुत सारी चीजें भक्तामर कल्प के रूप में , अन्य के रूप में जुड़े, उनके साथ मंत्रों को जोड़ा गया, तंत्रों को जोड़ा गया, अनेक कथाएं गढ़ी गई।
पर मैं इन सब पर ज्यादा विश्वास नहीं रखता, मैं तो भक्तामर के मूल स्तोत्र को पढ़ता हूँ और मेरी दृष्टि में उसका एक-एक अक्षर अपने आप में मंत्र है। भक्तामर स्तोत्र कोई साधारण स्तोत्र नहीं है, उसके अंदर ग्रन्थित एक- एक अक्षर अपने आप में मंत्र है, यदि आप उसका उपयोग करें। और एक बात, भक्तामर स्तोत्र वसंत तिलका छंद में है। वसंत तिलका छंद में पूरे १४ अक्षर होते हैं। 14 अक्षर वाले छंदों को क्यों जोड़ा गया? मैं समझता हूँ इसलिए जोड़ा गया कि यह हमको 14 गुणस्थान से पार ले जाएगा, 14 मार्ग नाव से पार ले जाएगा। इसलिए यह पूरे पार ले जाने वाला है, इसका आध्यात्मिक लाभ लीजिए।
Leave a Reply