हम प्रतिदिन छोटी-बड़ी कुछ गलतियाँ करते रहते हैं उन गलतियों के फलस्वरुप हमें कुछ पाप कर्म का बन्ध होता है उसके प्रायश्चित्त के लिए णमोकार की माला जपने को कहा जाता है। क्या णमोकार मन्त्र की माला जपने से हमारे पाप कर्म का उदय बंद हो जाता है? और अगर नहीं होता है तो हमको प्रायश्चित्त करने के लिए क्या करना चाहिए?
णमोकार आदि की माला फेरने की जो बात है उस पाप के प्रति जागरूकता की दृष्टि से है। हम पाप के प्रति जागरूक बनें ताकि उसकी पुनरावृत्ति न हो सके। णमोकार जपने से काफी अंशों में पाप नष्ट होते हैं पर सारे पाप णमोकार से साफ हो जाएँ ऐसी कोई गारंटी (guarantee) नहीं है। नहीं तो लोग जी भर के पाप करें और कहें हमें णमोकार मन्त्र आता है, हमारे पास पाप करने का लाइसेंस (licence) है। इधर णमोकार जप के पाप साफ करो और दिन भर पाप करो तो ऐसा काम नहीं करना। जो छोटे-मोटे नियम होते हैं उनमें आने वाली शिथिलता का प्रायश्चित्त तो भगवान के सामने अपनी निंदा-आलोचना करके भी हो जाता है और विशेष नियमों में अगर दोष लगते हैं तो गुरुओं के सामने प्रत्यक्ष जा करके उसका प्रायश्चित्त लेना चाहिए। विशिष्ट प्रायश्चित्त आचार्य ही देते हैं। कुछ ऐसे प्रायश्चित्त होते हैं जो आचार्यों के द्वारा हम लोगों को मार्गदर्शन मिलता है। छोटे-मोटे प्रायश्चित्त गुरुओं से ले सकते हैं क्योंकि हर कोई आचार्य तक पहुँच नहीं पाता है।
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