सल्लेखना पर मेरा एक आर्टिकल पढ़ने के बाद ऑस्ट्रेलिया की एक क्रिश्चियन डॉक्टर ने मुझसे कहा कि ‘मैं बार-बार breast cancer (स्तन कैंसर) होने की वजह से अस्पताल जाती हूँ। परन्तु यह पढ़ने के बाद मुझे art of dying (मृत्यु की कला) का पता चला है, अब मैं चर्च में जाकर जीसस के चरणों में रहूँगी।’ उसने मुझे से पूछा कि ‘आपके जैन धर्म का णमोकार मन्त्र क्या मैं चर्च में पड़ सकती हूँ?’
मैं इसे बहुत ही सकारात्मक परिणाम के रूप में देख रहा हूँ। सल्लेखना-सन्थारा आज विश्व स्तरीय तत्त्व बन गया है। भारत से बाहर भी लोगों के परिचय में आ गया। बच्चे-बच्चे ने सल्लेखना और सन्थारा के महत्व को न केवल जाना बल्कि उसे अपने जीवन में उतारने के लिए उत्साहित हुआ है। उस डॉक्टर बहन को मेरा बहुत बहुत आशीर्वाद! कि आपके जीवन के अन्तिम क्षणों में आपके भीतर यह बोध आया और आपने कायरता पूर्वक मरने की जगह ज्ञान पूर्वक शरीर छोडने का साहस प्रकट किया।
णमोकार मन्त्र जप कहीं भी कर सकते हैं। पर जब आपके जीवन में इतना परिवर्तन आया है, तो एक परिवर्तन और कर लो। अपने जीवन को शाकाहारी बना करके शुद्ध बना को, जीवन धन्य हो जाएगा; तब इस णमोकार मन्त्र का अनन्त गुना प्रभाव पड़ेगा। यह अच्छा संकेत है कि लोगों में बहुत बड़ी जागरूकता आई है और लोग इसकी उपयोगिता को समझ रहे हैं।
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