शंका
जब हम किसी को पसन्द करते हैं, किसी को चाहते हैं तो हमें उसके अवगुण नहीं दिखाई देते और जब हमें उसी व्यक्ति के प्रति हमारे मन में द्वेष आ जाता तो उसी में गुण दिखाई नहीं देते। ऐसा क्यों?
समाधान
ये ही तो संसार है, जिससे राग होता है वो व्यभिचारी हो तो भी प्रिय लगता है; और जिससे द्वेष होता है, तो साधु भी हो तो भी हमें अप्रिय लगता है। ये प्रियता और अप्रियता हमारे अन्दर के राग – द्वेष की परिणति है, और इसे हम जीतेगें तभी हम अपना उद्धार कर पाएँगें।
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