पूजा के शब्द समझ में नहीं आते तो मन कैसे लगाएँ?

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शंका

मैंने हाल ही में पूजा करना शुरू किया है, मेरे लिए ध्यान बनाना, कंसंट्रेशन करना बहुत मुश्किल है, मैं पूजा जब करती हूँ तो मुझे बहुत कुछ अर्थ समझ में नहीं आता। क्या इसका लाभ है और इसका क्या फायदा और क्या इससे पुण्य वर्गाणां बढ़ती है?

समाधान

हमारे यहाँ जो पूजाएँ हैं वो पुरानी हिंदी में हैं और पुरानी हिंदी हर किसी को समझ में नहीं आती। आपने बहुत ईमानदारी से अपनी बात रखी है कि मैं पूजा तो करती हूँ पर प्राय: उसका अर्थ समझ में नहीं आता और जो संस्कृत के पद होंगे उनका तो बिल्कुल समझ में नहीं आता होगा। समझिये पूजा है क्या? 

अष्ट द्रव्य के साथ भगवान के प्रति अपनी भक्ति की अभिव्यक्ति का नाम पूजा है। आपके पास शब्द न हों, भाव हों तो भावों के बल पर आप अपनी भक्ति की अभिव्यक्ति तो कर ही सकते हैं। यदि पूजा करते छंद समझ में आए या न आए, आपका भाव भगवान के चरणों में समर्पित हो जाता है, तो पुण्य का बन्ध तो निश्चित रूप से होता है। भाव को समर्पित कीजिए, भाव को भटकने मत दीजिए। 

आप ने कहा है कि कंसंट्रेशन नहीं रहता, वह कंसंट्रेशन बढ़ाने की प्रैक्टिस करनी चाहिए। इतना ही समझो कि मैं त्रिलोकीनाथ भगवान के चरणों में बैठी हूँ और उनकी सेवा के लिए हम उनकी भक्ति के रूप में दो शब्द प्रकट कर रहे हैं। भगवान मेरे सामने हैं और भगवान के लिए हम क्या दे सकते हैं, श्रद्धा के दो पुष्प उनके चरणों में अर्पित कर सकते हैं। शब्दों के माध्यम से जो टूटे-फूटे मुझसे बन रहा है, वह मैं समर्पित कर रहा हूँ। अगर मन में यह बात बैठ गई कि मेरे सामने भगवान हैं और मैं भगवान की पूजा में संलग्न हूँ, लीन हूँ तो आपके मन में पूजा करते समय जो विशुद्धि की धारा प्रकट होगी वो आपके अन्दर के सारे पाप और सन्ताप को दूर करने वाली होगी, उन सब का निवारण कर देगी, उससे भी कर्मों की निर्जरा होती है। 

ये तो एक बात हुई, साथ-साथ उसके अर्थ को सीखने का भी प्रयास करना चाहिए और किसी विद्वान् के माध्यम से उसे समझे ताकि आप को और अधिक लीनता आये। जब हम दुनिया की बातों को सीखने का समय रखते हैं तो पूजा आदि को और जो हमारे मूलभूत आवश्यक है उनको भी सीखने का अभ्यास करना चाहिए, इससे आपका स्वाध्याय भी होगा, ज्ञानवर्धन में निमित्त भी होगा और जीवन के कल्याण का पथ भी प्रशस्त होगा।

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