स्वाध्याय से कैसे होती है कर्मों की निर्जरा?
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स्वाध्याय से कैसे होती है कर्मों की निर्जरा? How Swadhyay helps in shedding karmas? निर्जरा जैन दर्शन के अनुसार एक तत्त्व हैं। इसका अर्थ होता है आत्मा के साथ जुड़े कर्मों का शय करना। यह जन्म मरण के चक्र से मुक्त होने के लिए आवश्यक हैं। स्वाध्याय ही हमें कर्मो की निर्जरा का मार्ग दर्शाता…

लोभ सबसे बड़ा पाप क्यों?
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लोभ सबसे बड़ा पाप क्यों? Greed- the biggest sin लोभ ही मनुष्य को सद्मार्ग से भटका देता है और यह पाप का सबसे बड़ा कारण है और शास्त्रो मे लोभ को संसार में सबसे बड़ा पाप कहा गया है। सुनिए मुनि श्री प्रमाण सागर द्वारा लोभ सबसे बड़ा पाप क्यों?” Share

ब्रह्मचर्य का वास्तविक स्वरूप
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ब्रह्मचर्य का वास्तविक स्वरूप Real meaning of celibacy ब्रह्मचर्य व्रत का अत्यधिक महत्व है। ब्रह्मचर्य को सभी तपों में सर्वोपरी तप कहा गया है। ब्रह्मचर्य हमारी आत्मिक शक्ति है। छांदोग्योपनिषद् में ब्रह्मचर्य के विषय में कहा गया है कि ब्रह्मचर्य के पालन का फल चारों वेदों के उपदेश के समान है।।सुनिए मुनि श्री प्रमाण सागर…

मन्त्रों और भावों का प्रभाव
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मन्त्रों और भावों का प्रभाव Effects of mantra and thoughts हमारे वेदोंऔर पुराणों में मन्त्रों का महत्व बताया गया है। पर क्या सिर्फ मंत्रो का उच्चारण करना काफी है ? या अगर मन्त्रों का उच्चारण भावों के साथ किआ जाए तो उनका प्रभाव होता है ?सुनिए मुनि श्री प्रमाण सागर द्वारा मन्त्रों और भावों का…

शास्त्र ज्ञान न हो तो कल्याण सम्भव हैं?
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शास्त्र ज्ञान न हो तो कल्याण सम्भव हैं? Is welfare possible in the absence of scriptural knowledge? शास्त्र ज्ञान भाव के द्वारा संशय को मिटाने पर ही मनुष्य का कल्याण सम्भव है। परमशान्ति का अनुभव न होने का कारण है – जो वस्तु अपने अन्दर है उसे अपने अन्दर न ढूंढ़ कर हम बाहर ढूंढ़ते…

अन्तिम समय ही सबसे महत्त्वपूर्ण क्यों?
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अन्तिम समय ही सबसे महत्त्वपूर्ण क्यों? Importance of last moments of life Share

जैन धरोहर की रक्षा कैसे करें?
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जैन धरोहर की रक्षा कैसे करें? How to protect Jain Heritage? “हर इमारत को अपने मूल रूप में सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी हमारी ही होती है और विडंबना तो यह है कि हम ही इसे नुकसान पहुँचाते हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि स्मारक का प्राकृतिक रूप से क्षरण होना तो प्रकृति का नियम है, लेकिन…

आयु बन्ध कब होता है?
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आयु बन्ध कब होता है? Bondage of Aayu Karma सात कर्मो का बन्ध प्रति समय होता रहता है किन्तु आयु कर्म का बन्ध कब होता है, उसकी आबाधा कितनी है, अकाल मरण क्या है आदि का वर्णन जानिये मुनि श्री प्रमाण सागर महाराज द्वारा। Share

जैन धर्म हिन्दू धर्म से भिन्न कैसे?
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जैन धर्म हिन्दू धर्म से भिन्न कैसे? How Jainism is differnt from Hinduism हिन्दू और जैन दो शरीर लेकिन आत्मा एक है। यह भी कह सकते हैं कि एक ही कुल के दो धर्म हैं- हिन्दू और जैन। जैन और हिंदू धर्म एक की भूमि पर उत्पन्न और विकसित हुए हैं इसीलिए दोनों की ही…

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