प्रतिस्पर्धा करें, प्रतिद्वंदता नहीं!

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शंका

आजकल बच्चों से लेकर सक्षम वृद्धों तक में एक दूसरे से आगे निकलने की, अपने आप को अग्रणी बनाने की अजीब सी होड़ लगी हुई है। घर से लेकर सड़क तक एक दौड़ मची हुई है, हर कोई भागा जा रहा है, इस दौड़ और होड़ पर कैसे नियन्त्रण किया जाए, कृपया मार्ग दर्शन दें?

समाधान

प्रतिस्पर्धा और प्रतिद्वंदिता दो अलग-अलग चीजें हैं। 

मेरी दृष्टि में प्रतिस्पर्धा सर्वथा बुरी चीज नहीं है। कई बार प्रतिस्पर्धा मनुष्य को आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देती है बशर्ते वो सकारात्मक दिशा में हो और किसी लक्ष्य से अनुबंधित हो। उस लक्ष्य को पाने के लिए मनुष्य जब गतिशील होता है प्रतिस्पर्धा करता है तभी आगे बढ़ता है लेकिन लक्ष्यहीन प्रतिस्पर्धा किसी मतलब की नहीं। आगे बढ़ना चाहिए  लेकिन आगे बढ़ना का कोई एक उद्देश्य होना चाहिए। कितने आगे बढ़ना? कितनों के आगे बढ़ना? उतना तक तो ठीक है। अगर किसी का लक्ष्य नहीं है, केवल दौड़ है, तो समझना वह अन्धी दौड़ है, पागलों की दौड़ है। वह दौड़ किसी अर्थ की नहीं, जिसका कोई ध्येय न हो। 

दूसरी बात प्रतिद्वंदिता कभी नहीं होनी चाहिए। प्रतिस्पर्धा और प्रतिद्वंदिता में अन्तर है। प्रतिस्पर्धा का मतलब है:- स्वयं को आगे बढ़ाने का प्रयत्न; और प्रतिद्वंदिता का मतलब है सामने वाले को पीछे धकेलने की कोशिश। आज प्रतिस्पर्धा कम, प्रतिद्वंदिता का रूप ज़्यादा बढ़ता जा रहा है जो बहुत भयावह है, हमें इससे बचना चाहिए।

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