शंका
आज ऐसा क्या है कि समाज उत्थान की बात हो या धर्म-अभ्युदय की, शिक्षा की हो या शिक्षायतन की, धर्म की हो या धर्मायतन की, संस्कृति की हो या संस्कार की, सदाचार की हो या सद्व्यवहार की, सभी क्षेत्रों में सन्त ही चिंतित एवं सक्रिय नजर आते हैं, समाज को मार्गदर्शन करते हैं। समाज खुद क्यों इन विषयों पर पहल नहीं करता?
समाधान
जब कोई व्यक्ति बीमार हो जाता है, तो उसका सब कुछ डॉक्टर पर निर्भर होने लगता है। स्वस्थ व्यक्ति अपने कार्य और क्रिया को करने में सक्षम होता है। पर अस्वस्थ व्यक्ति की निर्भरता डॉक्टर पर हो जाती हैं। मुझे ऐसा ही आज के समय दिखता है, समाज अस्वस्थ है और सन्त डॉक्टर की भाँति उनकी चिकित्सा करते हैं और यदि सही दिशा में चिकित्सा होती है, तो कुछ सोचने जैसी बात नहीं है। इसी से समाज स्वस्थ होगी।
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