शंका
मैं ‘छोड़ना’ और ‘छूटना’ अच्छी तरह से समझता हूँ। छोड़ना सुबह शौच से निवृत्त होने जैसा है और छूटना वमन करने जैसा! यह समझने के बावजूद भी मैं अमल क्यों नहीं कर पा रहा हूँ? मेरा गुणस्थान क्यों नहीं बढ़ पा रहा है? कृपया मार्गदर्शन दें!
समाधान
मैंने कभी कहा था कि ‘छोड़ने’ का मतलब है सुबह निवृत्त हो करके आना और ‘छूटना’ यानी वमन करना! वमन करने में जी मचलता है और शौच हो करके आते हैं तो आदमी स्वच्छ हो जाता है। इसलिए ‘छोड़’ दोगे तो ठीक है, ‘छूटेगा’ तो सब गड़बड़ हो ही जाएगा। इनका कहना है कि “मैं इस पर काफी दिनों से मन्थन करता आ रहा हूँ लेकिन छोड़ नहीं पा रहा हूँ, क्या करूँ?” पकड़ को थोड़ी ढीली करना शुरू करो! पकड़ बहुत पुरानी है और यही पकड़ तुम्हें विचलित कर रही है। पकड़ ढीली होगी तो सब कुछ सफल होगा।
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