पाप कषाय से बचने के उपाय
Different ways to prevent from commiting a SIN
“पाप प्रायः तीन प्रकार के होते हैं। मन से दूसरे का अहित सोचना, वचन से दूसरे के प्रति कुशब्दों का उच्चारण कर देना तथा शरीर से दूसरे को किसी प्रकार की हानि पहुँचा देना। पाप किसी प्रकार का हो, अपने मन में अशाँति उत्पन्न करता है। मनुष्य अन्दर ही अन्दर घबराता है। मनुष्य अपने पाप को जब तक मन में छिपाये रहता है, तब तक आत्मग्लानि का शिकार रहता है। मुनि श्री प्रमाण सागर जी बता रहे हैं पाप कषाय से बचने के उपाय
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