ज्ञानेंद्रिय के वश में न रहें अपितु वश में करें!
इन्द्रियों को वश में रखना चाहिए, इन्द्रियों के वश में नहीं होना चाहिए। यह हमारा शाश्वत सिद्धांत है। जो ज्ञानेन्द्रियों के वश में होते हैं, वे अच्छे और बुरे का विचार नहीं करते क्योंकि ज्ञान हमेशा गलत रास्ते में भाग जाता है। रागान्वित ज्ञान मनुष्य को पतित करता है। ज्ञानेन्द्रियों का जो सही उपयोग करते हैं, वे ही अच्छे और बुरे को जानते हैं। तो इन्द्रियों को वश में करने का मतलब क्या है? आँख को वश में करने का तात्पर्य आँखें बंद करना नहीं है, कान को वश में रखने का मतलब यह नहीं है कि कान में रुई ठूस लें, नाक को वश में रखने का मतलब ये नहीं है कि नाक में आप थीटा लगा ले, जिव्हा को वश में रखने का मतलब यह नहीं है कि आप उपवास कर लें। इंद्रिय को वश में रखने का मतलब क्या है? इंद्रिय का काम केवल जानने रूप है; तो केवल जानें! इंद्रिय से केवल इंद्रिय का काम करें और दूसरा कोई काम न करें।
एक बार गुरुदेव के चरणों में, अमरकंटक में, रामकृष्ण परमहंस मिशन के ४० सन्यासी आए। मैं वहीं बैठा था। एक ने प्रश्न पूछा- गुरुदेव! इन्द्रिय जय का उपाय क्या है? हमारे गुरुदेव तो बड़े महान है, बड़े-बड़े प्रश्नों का बड़ी सरलता में उत्तर दे देते हैं। बोले- बड़ा सरल उपाय है- इंद्रिय का काम इंद्रिय से करो।
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