कोरोना वायरस के इस वैश्विक संकट में धार्मिक आयोजनों पर भी कड़े प्रतिबंध लगा दिये गये हैं। मैंने देखा है इन विगत दिनों में नियमित रूप से मन्दिर जाने वाले और पूजन करने वाले, अभिषेक करने वाले लोगों में काफी बेचैनी है, काफी भगदड़ है। लोग दौड़ते-भागते अभिषेक के लिए भीड़ लगाते हुए पहुँच रहे हैं। कृपया इसमें आप समाज के लिए, देश के लिए मार्गदर्शन प्रदान करने की कृपा करें।
लोगों को आपातकाल के धर्म के विषय में गम्भीरता से समझना चाहिए। मैं हमेशा कहता हूँ धर्म कोरी क्रिया का नाम नहीं है, धर्म तो हमारे भावों और विचारों की शुद्धि का नाम है।
ये जिस तरह का संकट है, ये एक दूसरे के संसर्ग से फैलने वाला है। अगर मन्दिरों में इस तरह की आप भीड़ इकट्ठी कर रहे हैं और एक दूसरे के संसर्ग से ये बीमारी फैलती है, तो आप तय कीजिए आप पुण्य कमा रहे हैं या पाप? मन्दिर ऐसा केन्द्र है जिस केन्द्र में एक व्यक्ति के निमित्त से हजारों, और हजारों के निमित्त से लाखों तक ये बीमारी फैल सकती है। इसलिए सरकार ने अगर ऐसा कुछ कहा है, तो हमें उसके लिए सहयोग देना चाहिए। हमें प्रतीकात्मक तरीके से अपने पूजा-पाठ आदि को संपन्न कर लेना चाहिए, इसमें कोई दोष नहीं है।
जैसा कि मैंने आप लोगों को बताया था कि जब किसी व्यक्ति की बड़ी सर्जरी होती है, हॉस्पिटल में रहना पड़ता है। व्रती हो या प्रतिमा धारी हो, १५-१५ दिन तक अस्पताल में है, बेड पर है तो बिना दर्शन के अपना काम चलाता है या नहीं? पूजन के बिना, अभिषेक के बिना आप रहते हो या नहीं? बाद में प्रायश्चित्त लेते हो। ये पापोदय है, ये एक प्रकार का उपसर्ग है। इस समय आप अपनी क्रियाओं को सीमित कीजिए, रोकिये।
अभी इस मंच में आने के थोड़े देर पहले मुझसे एक भाई ने बताया कि ‘महाराज अभी छः मिनट पहले अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने लोगों से झोली फैलाकर घर में रहने की भीख माँगी है।’ आप सोचिए, अमेरिका जैसा ताकतवर देश जिसमें आज सौ लोग एक साथ मरण को प्राप्त हो गए। भारत में अगर कम्युनिटी स्प्रेड होगा तो क्या होगा, आप उसकी कल्पना कर सकते हैं? हमारे सभी मन्दिरों में बहुत भीड़ होती है, आप धर्म कीजिए, आप धार्मिक हैं। लेकिन धार्मिक होने का मतलब ये नहीं है कि आपका धर्म पूरे देश के लिए उपसर्ग का कारण बन जाए। हर मन्दिर में एक व्यक्ति अभिषेक कर ले, वह जो सुरक्षित है। और जो व्यक्ति दुकानों में बैठते हैं, इधर-उधर जाते हैं, वो व्यक्ति अभिषेक न करें और गन्धोदक न लें, दूर से प्रणाम कर लीजिए। अपने मन को तसल्ली दीजिए। ये एक बड़ा संकट है इसका और कोई उपचार नहीं, कोई उपाय नहीं है। मैंने अनेक लोगों से इस विषय में परामर्श किया, बड़े-बड़े चिकित्सक, जो एम्स के चिकित्सक हैं, उनकी भी यही सलाह है। घर तक सीमित रहें। डब्ल्यू.एच.ओ से जुड़े हुए लोगों कि सलाह है, घर तक सीमित रहें। ट्रंप जैसा ताकतवर व्यक्ति, जिनके पास इतने अधिक संसाधन हैं, वे भी गुहार कर रहें हैं अपने नागरिकों से।
शाम को मन्दिर जाना जरूरी नहीं है, घरों तक सीमित रहिए। आप ये भूल जाइए कि आपके गाँव में कोई गुरु है, आपके यहाँ कोई मन्दिर है, आप घर में अपने आप को सीमित रख लीजिए। अगर लोग सीमित हो जाएँगे तो इस बीमारी के फैलाव को काफी अंशो तक नियंत्रित किया जा सकेगा और यदि आप नहीं रोक पाएँगे तो स्थिति भयावह हो जाएगी, इसका कोई अन्त नहीं दिखता। ये मत सोचना कि दो-चार-आठ-पंद्रह दिन, हफ्ते-दो हफ्ते में ठीक हो जाएगा। कल लोगों ने जनता कर्फ्यू बहुत अच्छे से किया और कर्फ्यू खुला तो ९ बजे ऐसा जश्न मना लिया जैसे वर्ल्ड कप जीत के आ गए हों। ये हमारे समय के अनुकूल नहीं है। इन सब चीजों को समझना चाहिए और लोगों को इस पर बहुत गम्भीरता का परिचय देना चाहिए। अभी आपत्ति काल है, “आपत्ति काले मर्यादा नास्ति“। खासकर मैं अपने समाज के व्रती जनों को, वृद्ध जनों को, उन धार्मिक जनों को कहना चाहूँगा जिनकी धार्मिक क्रियाओं में बड़ी रूचि है, मन्दिरों में रुचि है, घर में मन्दिर जैसा वातावरण बना लीजिये। वहाँ बैठ करके पूजा पाठ कर लीजिए। आपकी भावनाएँ भगवान के चरणों में अर्पित हो जाएंगी। पर इस तरह की ज़िद छोड़ दीजिए और आपातकालिक धर्म को उसी तरह से पालिये और साधु-सन्तों से भी सुरक्षित दूरी रख के चलिए।
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