वार, तिथि और दिशा क्या इनका हमारे जीवन में प्रभाव पड़ता है? धार्मिक दृष्टि से भी इनका कोई महत्त्व है क्या?
जब मै ज्योतिष में मुहूर्त शास्त्र पढ़ रहा था तो उसमें लिखा था कि एक पंचकल्याणक में 108 बातें सोधो। 108 बातें सोधना बड़ा मुश्किल होता है, वह 108 की 108 बातें पांच- सात बरस में एक बार आती है, पंच कल्याणक मुश्किल। मैंने पूछा कि भाई यह तो बहुत कठिन है।फिर लिखा कि 108 में ऐसा करो जितनी अधिक से अधिक हो जाएँ वैसा कर लो तो बोले वह भी नहीं हो रहा है। कोई नकारात्मक योग मिले तो उसको टाल दो, वह भी नहीं हो रहा और काम करना है। ऐसा करो इसमें मुख्य- मुख्य ये योग होना चाहिए और प्रतिष्ठा करा लो। वो हो कि नहीं हो प्रतिष्ठा करना है, तो बोले लगन फल से प्रतिष्ठा कर लो। लग्न भी कमजोर है, तो नोमांश निकाल कर लो। नोमांश में भी काम नहीं हो रहा है, तो मनोबल से कर लो। हमने कहा इतना मुहूर्त पढ़ना ही बेकार हो गया। जिसका मनोबल ऊँचा होता उसके लिए वार, तिथि कुछ काम नहीं करती। रोज फ्लाइट चलती है, रोज ट्रेनें चलती है, रोज गाड़ियाँ घूमती है, कोई दिशाशूल नहीं लगता। फिर भी जिनका हीन पुण्य है और जिनका मनोबल कमजोर है उन्हें इसे देखकर, विचार करके चलना चाहिए।
इसका लाभ ये है कि आप अच्छे मुहूर्त को देखकर कार्य करते हैं तो प्रारम्भ में ही आपका मनोबल ऊँचा हो जाता है। एक सेल्फ कान्फिडेंस बढ़ता है कि मैं अच्छे मुहूर्त में निकला हूँ मुझे सफलता मिलेगी और यही विश्वास सफलता का आधार बन जाता लेकिन लकीर के फकीर मत बनिये।
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