क्या शुभ-अशुभ कार्यों से कर्म बन्ध कम या ज़्यादा हो सकता है?

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शंका

क्या शुभ-अशुभ कार्यों से कर्म बन्ध कम या ज़्यादा हो सकता है?

समाधान

कर्म बंधता है, उसे भोगना ही पड़ता है। लेकिन हाँ, यदि आप कर्म बंध के बाद जाग जाएं, तो अपने बंधे हुए कर्म में कुछ कमी कर सकते हैं। जैसे सम्राट श्रेणिक ने यशोधर मुनिराज पर उपसर्ग करते वक्त सातवें नरक की आयु का बंध किया, तैंतीस सागर का। बाद में उसे सदबुद्धि हुई। भगवान महावीर की शरण में आया, क्षायिक सम्यक दर्शन प्राप्त कर लिया, तीर्थंकर प्रकृति का बंध कर लिया और उस कर्म को, जो तैंतीस सागर की आयु लेकर सातवे नरक में जाना था, उसे मात्र चौरासी हजार वर्ष तक सीमित कर लिया।

तो बंधे हुए कर्म को भोगना तो पड़ता ही है। लेकिन उसे काफी कुछ dilute किया जा सकता है। और कुछ कर्मों को परिवर्तित भी किया जा सकता है। दोनो प्रकार की संभावनाएं बनती है। इसको हमारे कर्म सिद्धांत की भाषा मे बोलते हैं संक्रमण। यदि आपके द्वारा कोई पाप हुआ और उसके बाद आपने पश्चाताप कर लिया, तो अन्तरंग पश्चाताप और प्रायश्चित के बल पर आप अपने जीवन में किए गए बड़े से बड़े पाप को साफ कर सकते हैं। हाँ, कुछ कर्म इतने प्रगाढ़ होते हैं जिन्हें भोगना ही पड़ता है। जैसे निधत्ति निकाचित कर्म। लेकिन फिर भी हमें दो बातें सदैव ध्यान में रखना चाहिए – एक, कर्म करने से पूर्व सावधान होना चाहिए कि “मैं ऐसा कुकर्म करूँ ही नहीं जिससे बंधन का शिकार बनूँ” और दूसरा, यदि कर्म बंधन बंध गया है, तो उससे रोने की जगह उस बंधन को काटने के लिए जितना सत्कर्म कर सकें, पुरुषार्थ कर सकें, करें। काफी कुछ हद तक उस कर्म को साफ किया जा सकता है।

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