धर्म की क्रियाओं को छोड़कर परोपकार की क्रियाओं में रुचि से पुण्य या पाप?

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शंका

धर्म की क्रियाओं को छोड़कर परोपकार की क्रियाओं में रुचि से पुण्य या पाप?

समाधान

कई लोग होते हैं जिनका धर्म पर विश्वास होता है, धार्मिक क्रियाओं पर विश्वास नहीं होता। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि जो तथाकथित धार्मिक लोग हैं उनकी कथनी-करनी के अन्तर को देखकर वे उससे प्रभावित होते हैं। ऐसा धर्म करने से क्या फायदा जो जीवन की कषायों को शांत नहीं कर सके। ऐसे लोगों को देखकर, जो लोग धार्मिक हैं, उन्हें अपने आप को सुधारने का प्रयास करना चाहिये और ठीक रीति से धर्म करना चाहिए ताकि धर्म की हँसी ना हो और अधर्मी जनों के मन में धर्म से दूरी ना बने। धार्मिक जनों को इस तरीके से धर्म करना चाहिए ताकि अन्य अधर्मी लोग धर्म के प्रति आकृष्ट रहें। परोपकार सेवा आदि भी हमारे धर्म का एक अंग है, एक तरफ हमारे मन की दया है और दूसरी तरफ सारी धार्मिक क्रियाएँ हैं। यदि व्यक्ति के ह्रदय में अंतरंग से दया भरी है तो उसकी सारी धार्मिक क्रियाएँ एक तरफ है। तो जो व्यक्ति दया से ओत-प्रोत है वह सच्चा धर्मात्मा है, इसमें कोई संकोच करने की बात नहीं है और दया केवल प्राणियों के दिखाने के लिये नहीं, जीव हिंसा से बचने का भाव जिसके हृदय में ऐसी दया होगी उसके आचार विचार में निर्मलता होगी, उसके खान-पान, रहन-सहन, उठने-बैठने के तौर-तरीके में भी उस दया की झलक दिखनी चाहिये।

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