शंका
पर्व में, विधान में, आयोजनों में, हम साड़ी पहनकर मन्दिर जाते हैं, पर रोज की जिंदगी में हम सलवार सूट पहनकर मन्दिर चले जाते हैं। सलवार सूट पहनकर भी हम सिर ढँक कर ही महाराजश्री के दर्शन करते हैं, पूजा करते हैं। इससे क्या हमारा पुण्य क्षीण होता है?
समाधान
हमें अपनी मर्यादाओं का ध्यान रखना चाहिए। हमारे संस्कार और सरोकारों का ध्यान रखना चाहिए। हर क्रिया को केवल पुण्य और पाप की दृष्टि से नहीं किया जाता। हमारी बहुत सारी क्रियाएँ, हमारी मर्यादा और संस्कारों के अनुरूप होती हैं। तो हम मन्दिर जाएँ, अपने संस्कार को सुरक्षित रखें, अपनी मर्यादाओं को सुरक्षित रखें, ताकि हमारी भी शालीनता और सात्विकता कायम हो तथा हमारे निमित्त से किसी अन्य के मन में किसी प्रकार की विकृति भी न आये।
Leave a Reply