क्या हमारे द्वारा स्थापित जिनप्रतिमा के प्रतिदिन पूजा-प्रक्षाल का दायित्व हमारा है?

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शंका

यदि हमें जिन प्रतिमा स्थापित करनी है, तो क्या ये नियम होता है कि स्वयं उसका पूजन, पाठ व अभिषेक करें? यदि हम कहीं बाहर प्रतिमा स्थापित करते हैं और वहाँ किसी कारण से नित्य पूजा-प्रक्षालन नहीं हो पाता तो क्या उसका हम पर कुछ प्रभाव पड़ता है?

समाधान

आगम में जिनप्रतिमा को विराजमान करना, नित्य पूजा करने की श्रेणी में लिखा है। यदि आप कहीं प्रतिमा स्थापित करते हैं, मन्दिर जी का निर्माण कराते हैं, आप मन्दिर में कोई उपकरण दान देते हैं, उनकी पूजा-प्रक्षलन की स्थाई व्यवस्था में अपना कोई सहयोग देते हैं, तो ये सब नित्य पूजा के अन्तर्गत आता है। यदि आप ऐसी जगह श्रीजी को विराजमान कर रहे हैं जहाँ आप रहते नहीं तो कोई जरूरी नहीं कि आप श्रीजी की रोज पूजा पाठ करें।

 एक ही गाँव में अनेक मन्दिर हैं, किसी मन्दिर में निर्माण कार्य हुआ, वहाँ प्रतिमाजी विराजमान कराने का आपको सौभाग्य मिला, आपने प्रतिमाजी विराजमान कर दी। तो ये तो सम्भव नहीं कि आप हर मन्दिर में पूजा करें। पूजा नहीं कर पा रहे हैं इसका मतलब आपका इसमें कोई दोष नहीं है। प्रतिमा विराजमान कर देना ही नित्य पूजा है; और केवल नित्य पूजा ही नहीं है आपने जो प्रतिमा विराजमान कर दी है उस प्रतिमा के निमित्त से जितने जीवों को पूजा करने का पुण्य मिल रहा है वो पुण्य कमा रहे हैं उनका एक हिस्सा आपके खाते में आ ही रहा है। हाँ, कहीं आपने प्रतिमाजी विराजमान की और वहाँ पूजा-प्रक्षालन की कोई व्यवस्था नहीं दिख रही है, तो आपको चाहिए कि आप वहाँ पर पूजा-प्रक्षालन की व्यवस्था सुनिश्चित कर दें। यदि आप जा पायें तो अच्छी बात; यदि नहीं जा पायें तो खुद पूजा-प्रक्षालन की व्यवस्था कर दें। 

प्रतिष्ठा शास्त्रों के अनुसार कहीं भी आप जिन प्रतिमा विराजमान करो तो उसे, प्रतिमा को विराजमान करते समय श्रीजी के पूजा-प्रक्षालन की स्थायी व्यवस्था बनाये रखने के लिए कुछ द्रव्य राशि न्यौछावर करनी चाहिए, अपनी शक्ति के अनुरूप जो अधिक से अधिक दे सकें। तो आप की नित्य पूजा जारी रहेगी।

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