आज के टाइम बहुत फास्ट हो गया है, तो फोन में एप आती हैं उनको अपडेट कर दो तो ऐसा कुछ धर्म के हिसाब से अपडेट कर लें? दो घंटे शास्त्र सभा में बैठना ज़्यादा अच्छा है या फिर पाँच मिनट के प्रवचन से एक बात निकाल कर उसको फालो करना ज़्यादा अच्छा है?
आज दुनिया फास्ट है रोज एप्स में अपडेट होते जा रहे हैं। मैं आपसे पूछूँगा, मुझे ज़्यादा जानकारी नहीं, यह जानकारी आप लोगों से ही लेना चाहूँगा, अपनी जानकारी को पुष्ट करने के लिए। कुछ एप ऐसे भी होंगे जिनको कभी अपडेशन की जरूरत नहीं पड़ती। हैं एक आध एप? यहाँ सब टेक्नोलॉजी का ज्ञान रखने वाले लोग बैठे हैं तुम ही बताओ ऐसा कोई ऐप नहीं है जिसको कभी अपडेट करने की जरूरत नहीं, हमेशा अपने आप अपडेट करता है। मैं आपसे पूछना चाहता हूँ इतने सारे ऐप्स बने हैं, कोई ऐप है जिसमें परिवर्तन की आवश्यकता न हो? अपडेशन कैसा होता है, उसका टेक्नोलॉजी से अपडेट करते चलिए। मैं अपनी दूसरी तरफ आता हूँ, अच्छा हुआ मेरी जानकारी पुष्ट हो गई क्योंकि मैं टेक्नोलॉजी जानता नहीं। मैं तो एक ही टेक्निक जानता हूँ जीवन को समझने की और जीवन को समझाने की और मैं समझता हूँ वो सबसे अच्छी टेक्निक है। एप्स रोज बनते हैं और बनने के बाद रोज-रोज अपडेट होते हैं। धर्म को क्या समय के अनुरूप अपडेट नहीं किया जा सकता? मैं आप से कहता हूँ तुम्हारे द्वारा बनाए गए ऐप तुम्हारी जरूरतों के आधार पर बनते हैं और जरूरतों के अनुरूप उन्हें तुम अपडेटिंग करते हो, अपडेट करते जाते हो, बनते हैं बदलते हैं लेकिन धर्म एक ऐसा माध्यम है जो हमेशा अपडेट रहता है, उसे अपडेट करने की जरूरत ही नहीं है और एक बात बताऊँ यदि तुम धर्म का अनुपालन करोगे खुद भी अपडेट हो जाओगे, आउट ऑफ डेट नहीं होगे क्योंकि धर्म एक ऐसा तत्त्व है जो देश-काल की सीमाओं से नहीं बन्धता, धर्म सार्वभौमिक और सार्वकालिक है। वह प्रकृति के नियम के अनुसार चलता है जैसा अभी डॉक्टर ने कहा कि हम भोजन मुँह से करते हैं और भोजन के बाहर निकलने का स्थान भी एक था और भोजन के पचने की जो प्रक्रिया ४ घंटे की है, आदि काल से रही है और अन्त तक रहेगी। वैसे हम जैसे जीवन आज जी रहे हैं जीवन जीने के में जो विकृतियाँ हैं, अनादि काल से हमारे अन्दर जैसी थी वैसी आज है, आगे भी वही रहेगी, उसको अलग से अपडेट करने की जरूरत नहीं है। आवश्यकता क्या है? आवश्यकता उसकी केवल युगानुरूप व्याख्या की। हमने धर्म के विषय में जो अपनी अवधारणाएँ बना रखी है उस कंसेप्ट को बदलने की आवश्यकता है। मैं अपनी भूमिका के अनुरूप किस तरीके से धर्म कर सकूँ, हमारे यहाँ तो कुत्ते-बिल्ली को भी धर्म पालन करने की आजादी है। धर्म में इतनी गुंजाइश है कि एक साधारण व्यक्ति भी अपनी भूमिका के अनुसार धर्म कर लेगा। हमारे आचार्यों ने एक यमपाल चांडाल को जिसने केवल चतुर्दशी के दिन हिंसा का त्याग कराया था, किया था केवल एक दिन, उसे भी धर्मी कह करके पुकारा है, तो धर्म का स्वरूप बहुत व्यापक है। अपनी भूमिका के अनुसार धर्म करें और धर्म में सारी संभावनाएँ हैं।
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