क्या मन्दिर जाने से धर्म होता है?
इतने छोटे बच्चों को जब आप जवाब देने में समर्थ हो जाएँगे कि मन्दिर जाने से धर्म क्यों होता है, तो मैं समझता हूँ बड़े होने के बाद उस बच्चे को कभी कहने की आवश्यकता नहीं होगी कि मन्दिर जाने से धर्म क्यों होता है? मैं आपको बताऊँ ऐसा ही एक युवक ने मुझसे पूछा कि महाराज मन्दिर जाने के लिए इतना क्यों जोर दिया जाता है, क्या मन्दिर जाने से ही धर्म होता है? मैंने कहा मन्दिर जाने से ही धर्म होता है ऐसी बातें मैं नहीं करता पर मन्दिर जाने से धर्म होता है इस बात को तो तुम्हें मानना होगा। भगवान हमको कुछ लेते नहीं, देते नहीं तो मन्दिर जाने से क्या मिलता? हमने कहा तुमने भगवान की मुद्रा को देखा, कैसे खड़े हैं? शान्त है। कैसा दिखता है? बोले चेहरे पर प्रसन्नता दिखती है। उनमें गुस्सा दिखता, नहीं दीखता और उनमें किसी के प्रति हँसी दिखती, नहीं दिखती। कोई क्षोभ दिखता है, नहीं दिखता, कुछ नहीं दिखता, सहज, शान्त मुस्कान भरी एक मुद्रा है। मैंने उनसे पूछा – भगवान के पास कुछ धन-पैसा नहीं है, कुछ लिये नहीं, फिर सब कुछ ठीक है और कुछ बोले या न बोले भगवान की मुद्रा यह बोलती है तू न कुछ लेकर आया है न कुछ लेकर जाएगा, यही तेरा रूप है खाली हाथ आया है हाथ पसारे जाना है तुमको, अब कुछ भी तुम्हारे पास नहीं है तुम रोज दर्शन करने जाओ और दर्शन करते वक्त केवल इतनी बात समझ लो कि भगवान आप जिस रूप में दिख रहे हैं वही मेरे जीवन का सच्चा रूप है। न हम कुछ लेकर आये हैं न कुछ लेकर जाएँगे, कभी तुम्हें कुछ कहने की जरूरत नहीं। सुबह से तुम्हें एक अच्छी प्रेरणा मिल जाएगी फिर संसार से तुम्हारा ज़्यादा लगाव नहीं होगा और तुम्हारे अन्दर पाप व अनाचार की ज़्यादा प्रवृत्तियाँ नहीं लगेगी। मन्दिर जाने से धर्म इसलिए होता है कि वहाँ जाने से हमारा मन जागृत होता है। हमारी धर्म के प्रति श्रद्धा और ज़्यादा बलवान बनती है, श्रद्धा बलवान होती है, मन निर्मल होता है और मन की निर्मलता, श्रद्धा की प्रगाढ़ता, हमारे जीवन की धारा को परिवर्तित करती है।
एक दिन एक युवक ने मुझसे कहा जब उनके पिताजी ने कहा कि महाराज जी मन्दिर के दर्शन के लिए इसको बोलो? उस लड़के ने बोला महाराज जी भगवान तो सब जगह हैं फिर मन्दिर जाने की क्या जरूरत? मैंने कहा बिल्कुल ठीक है, भगवान सब जगह है, तो यह बताओ हवा भी तो सब जगह है। यह बताओ तुम्हारी गाड़ी के टायर में हवा नहीं रहती तो हवा भरने के लिए क्या करते हो? कहीं की भी हवा लेकर अपनी गाड़ी में भर लेते हो? उसके लिए तो फिलिंग स्टेशन जाना पड़ता है। वहाँ पर जाने पर ही हवा क्यों भरती है? जब तक उसमे प्रेशर न हो तब तक उसमें हवा नहीं भरी जा सकती और फिलिंग स्टेशन में ही उतना प्रेशर होता है, वही हवा भरी जा सकती है। बस तुमसे मैं इतना ही कहता हूँ भगवान सब जगह हो सकते हैं लेकिन प्रेशर तो केवल मन्दिर में ही होता है। वो तुम्हें रिचार्ज करेगा, भगवान के चरणों में जाने से विनम्रता का भाव आता है। हमें लगता है कि हमारा कोई आदर्श पुरुष है जिनकी शरण में जाकर हम अपने जीवन का उद्धार कर सकते हैं, अपने अहंकार को खत्म कर सकते हैं, अपने पापों का परित्याग कर सकते हैं, अपनी बुराइयों को छोड़ सकते हैं, अपने मन को पवित्र बना सकते हैं, मन्दिर जाने से यही धर्म होता है और इस धर्म को करने के लिए हमारे पास कोई दूसरा स्थान नहीं है।
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