शिविरों में टोकन राशि दे कर सारी सुविधाएं लेने पर क्या निर्माल्य का दोष लगेगा?

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शंका

शिविरों में टोकन राशि दे कर सारी सुविधाएं लेने पर क्या निर्माल्य का दोष लगेगा?

समाधान

धार्मिक कार्यों में जब भी समिल्लित हो तो अपनी अधिक से अधिक राशि नियोजित करने की कोशिश करना चाहिए। तुम्हारा जो लगेगा वो तुम्हारे पुण्य के खाते में जायेगा। इसलिए अपनी शक्ति के अनुरूप लगाना चाहिए। 

जहाँ तक आयोजकों का सवाल रहता है वो लोगों की सुविधा के लिए एक टोकन राशि रख देते है, शिविर तो निःशुल्क ही रहता है। अब रहा सवाल इसमें निर्माल्य का दोष लगेगा क्या? निर्माल्य का दोष शिविर जैसे कार्यक्रम में इसलिए नहीं लगेगा क्योंकि इसमें किसी ने अपनी तरफ से आप के कार्यक्रम में सहयोग किया है, वे पुण्यार्जक हैं। उन्होंने अपने द्रव्य का सदुपयोग किया और उससे आपको लाभ मिल रहा है। अगले व्यक्ति ने अपना धन लगा के पुण्यार्जन कर दिया, तुमने क्रिया की तुम्हें भी अपनी शक्ति के अनुसार ज़रूर लगाना चाहिए। जितना बने लगाओ, ये देखो कि तुम जहाँ भाग लिया है, तुम्हारे ऊपर अपना कितना खर्चा आया होता! अपने आप अनुमान लगाओ और उतना आयोजन समिति को सधन्यवाद दो कि ‘आप के सहयोग से हमें यह कार्यक्रम मिला, हमने दस दिन तक शिविर का लाभ उठाया, आनन्द लिया यही हमारे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है।’ यदि ऐसा करें तो अच्छा है। 

लेकिन किसी व्यक्ति की उतनी सामर्थ्य नहीं है और वो नहीं देता तो इसका अर्थ यह नहीं समझना कि वो निर्माल्य का दोषी है। निर्माल्य का दोषी तब हो जब कहीं व्यवस्था न हो और तुम घुसपैठ करके यह लाभ उठाओ।

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