युवा पीढ़ी सोचती है कि धर्म के मार्ग में लगने से शादी में रुकावट आयेगी, मार्गदर्शन दें?
ये इस युग की विडम्बना दिखती है कि धर्म के मार्ग में लगने से शादी में रुकावट और पाप के मार्ग में चलने से शादी फर्राटे से हो जाती है। उलटी सोच है लोगों की।
अगर किसी का लड़का शराबी है, व्यभिचारी है उसके लिए प्रश्न नहीं उठायेंगे; लेकिन किसी के घर में धर्म होता है, तो ‘वहाँ ज़्यादा धर्म होता है, वो लड़का ज़्यादा धार्मिक है।’ बन्धुओं जिस बात को हमें सबसे ज़्यादा महत्त्व देना चाहिये, आज के तथाकथित लोग उसे गौण करते हैं और जिसे गौण रहना चाहिए उसे महत्त्व दे रहे हैं। इसका दुष्परिणाम सामने आने लगा है। एक व्यक्ति ने अपनी वेदना मुझसे कही। उसने अपनी बेटी की शादी दो अच्छे धार्मिक प्रस्तावों की उपेक्षा करके एक सम्पन्न और आधुनिक परिवार में करी। धार्मिक परिवार भी सम्पन्नता के क्षेत्र में कम नहीं थे लेकिन उसकी यही सोच थी कि ‘परिवार ज़्यादा धार्मिक है, मेरी बेटी कैसे एडजस्ट करेगी? एक आधुनिक परिवार में उसका सम्बन्ध हुआ, आपको क्या बताऊँ? ६ महीने बाद बेटी घर आ गई और डेढ़ साल बाद उनमें Divorce हो गया। जिस लड़के से उसकी शादी की थी वह लड़का बिना drink किये घर आता ही नहीं था। मेरी बेटी उसको बरदाश्त नहीं कर सकती थी। मैं अब समझा कि धार्मिक परिवार का क्या महत्त्व होता है।’
सोच को बदलिए। आज धर्म ही व्यक्ति के चरित्र की रक्षा कर सकता है कोई दूसरा नहीं। धार्मिक होने का मतलब यह थोड़े ही है कि कोई साधु बन गया। धार्मिक होने का मतलब धर्म और समाज के कार्यों में आगे रहे और सदाचार और सद्विचार पूर्वक जीवन जिए। आज के युग में कोई युवक सदाचारी बनता है, तो ये बड़े आश्चर्य की बात है और उसे तो वरीयतापूर्वक अपना सम्बन्ध करना चाहिए ताकि वहाँ रहने वाला व्यक्ति बहुत अच्छे तरीके से अपने जीवन का निर्वाह कर सकें और अपने आचार-विचार की रक्षा कर सके। ये जो परम्परा है बहुत उलटी परम्परा है। मैं तो कहता हूँ आज समाज में ऐसे लोगों की संख्या बहुत है जो केवल धार्मिक परिवारों की खोज करते हैं क्योंकि वह खुद धार्मिक है, उनकी सन्तान धार्मिक है, उन्हें धार्मिक परिवार की जरूरत होती है लेकिन समाज में ऐसे लोगों का आपस में सम्पर्क नहीं होता। मैं तो कहता हूँ ये हम साधुओं का काम नहीं, आप श्रावकों का काम है, समाज एक ऐसी एजेंसी विकसित करे जिसमें धार्मिक विचारधारा वालों को आपस में जोड़ दें तो जीवन धन्य हो जाएगा और लोगों को बड़ी प्रसन्नता की अनुभूति होगी।
दूसरा प्रसंग बताता हूँ, अत्याधुनिक परिवारों में सन्तान को देने का दुष्परिणाम क्या होता है। एक धार्मिक परिवार की लड़की जिसके पिताजी और दादाजी दोनों प्रतिमाधारी थे, उस लड़की की शादी एक सम्पन्न किन्तु जरूरत से ज़्यादा आधुनिक परिवार के लड़के से कर दी गई। अब विवाह हो गया घर से एकदम विरुद्ध वातावरण! उसे बड़ी तकलीफ क्या करे? कैसे करे? एक दिन उसने अपनी वेदना मुझसे कही कि ‘महाराज जी मेरी ऐसी स्थिति हो गई, मेरे जो संस्कार थे उनसे ससुराल का पूरा का पूरा वातावरण एकदम विरुद्ध है। मुझे लगता है मैं कहाँ फँस गई? इससे अच्छा मैं किसी गरीब से शादी कर ली होती तो ज़्यादा सुखी होती। मेरा मन कचोटता है, मुझे लगता है मेरा मनुष्य जीवन बर्बाद हो गया?’ मैंने उसे समझाया फिर पूछा कि ‘तुम्हारे पति का क्या स्थान है?’ बोली ‘महाराज जी मेरे पति ऐसे तो ठीक हैं पर धर्म के मामले में बिल्कुल आगे आना नहीं चाहते। मुझे भी रोकते हैं, शुरुआत में तो मैं रुक जाती थी, आजकल अनदेखी करके आ जाती हूँ।’ मैंने कहा ‘ठीक है तुम अपने पति के कुछ मित्रों के नाम बताओ जो मेरे पास आते हैं।’ उनके मित्रों के माध्यम से उसके पति को बुलवाया। पति थोड़ा आगे बढ़ा, उस घर में पहली बार चौका लगा और मैं पहले दिन ही आहार करने के लिए चला गया। जब आहार करने के लिए गया तो वो और उसका पति, उसकी बहन और कुछ लोग, वो लोग आहार दे रहे थे, उस घर के बुजुर्ग लोग उस समय केरम खेल रहे थे। उसको कितनी तकलीफ, बहुत तकलीफ होती है।
इसलिए समान विचारधारा में ब्याह सम्बन्ध करना चाहिए और आज के समय में व्यसन और बुराइयों से बचना बहुत कठिन है। ९०% युवक-युवतीओं की स्थिति विषम होती जा रही है। उसमें सम्भाल अगर कोई परिवार धार्मिक है तभी हो सकता है, अन्यथा नहीं। इसलिए हमारी राय तो ये है कि आप इसे ही प्राथमिकता दें ताकि आपका जीवन सुरक्षित हो और ठीक ढंग से अपनी जिन्दगी का निर्वाह कर सके।
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