जब हम घर से तैयार हो कर मन्दिर में अभिषेक करने के लिए जा रहे हों और रास्ते में किसी भी व्यक्ति का एक्सीडेंट हो जाए तो हमें पहले क्या करना चाहिए? उसकी हेल्प करनी चाहिए या मन्दिर जाना चाहिए? और इसमें पाप बन्ध होता है क्या?
एक घटना सुनाता हूँँ, तुम्हारे जयपुर की ही घटना है। पंडित टोडरमल जी का नाम आपने सुना होगा। पंडित टोडरमल जी के निर्देशन में इसी जयपुर में किसी मन्दिर में सिद्धचक्र महामंडल विधान का आयोजन चल रहा था। उसके मुख्य विधानाचार्य के रूप में पंडित जी थे। वे घर से शुद्ध वस्त्र पहनकर के मन्दिर के लिए निकले। रास्ते में देखा कि एक बूढ़ी अम्मा कीचड़ में फिसल करके गिर गई है और कराह रही है। उस माँ को कराहती देख उनसे रहा नहीं गया और वे अपने आसन से उठे और सीधे उस बूढ़ी अम्मा तक गए, उसे उसके स्थान से उठाया, ऐसा लगा कि जैसे कमर टूट गई है। वो उसे सीधे चिकित्सक के पास ले गए और सारा कर्तव्य कर चुकने के बाद डेढ घंटे के विलम्ब से वे विधान स्थल पर पहुंचे। पंडित जी की प्रतीक्षा करते करते लोग बड़े आतुर थे और जब पंडित जी डेढ़ घंटे के विलम्ब से पहुँचे तो उनकी आतुरता आक्रोश में परिवर्तित हो गई। एक साथ सब के सब बोल पड़े “पंडित जी आज आपने कितना विलम्ब कर दिया, पूरा पाठ अधूरा रह गया।” तब पंडित जी ने कहा कि “सिद्धचक्र का सच्चा पाठ तो आज ही हुआ है।” सब के सब भौंचक्के कि अभी पाठ की शुरुआत तो हुई ही नहीं थी और आप कह रहे हैं सिद्धचक्र का सच्चा पाठ तो आज ही हुआ। मामला क्या है? उन्होंने पूरी घटना सुनाई और कहा- “मन्दिर में हम भगवान की पूजा करते हैं, यह तो केवल द्रव्य पूजा है पर किसी जीते जागते इंसान की सेवा भाव पूजा से कम नहीं।” मैं समझता हूँ आपको समाधान मिल गया होगा।
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