शिखर जी की विस्तीर्णता, वह चाहे ऊँचाई में हो या चौड़ाई में हो, क्या वह काल की वजह से कम या ज्यादा होती रहती है?
सम्मेद शिखर-जी का पर्वत, शास्त्र के विधानुसार १२ योजन का था। आज सिमट कर बहुत छोटा रह गया है। जब हम भूगर्भ शास्त्रीय अध्ययन के आधार पर इस पर्वत श्रृंखला के बारे में विचार करते हैं तो इसे अवशिष्ट पर्वत की संज्ञा दी गई है। अवशिष्ट पर्वत जो मोड़दार पर्वतों का जो अवशिष्ट रूप होता है, वे होते हैं। और मोड़दार पर्वत में आज नया मोड़दार पर्वत हिमालय है। जिसे भू-वैज्ञानिकों के द्वारा आज से तीन करोड़ वर्ष पुराना बताया है। इसलिए सम्मेद शिखर जी का पर्वत बहुत प्राचीन रहा और ये पुराना मोड़दार पर्वतों का अवशिष्ट रूप रहा। इस लिए बहुत बड़ा रहा होगा। (१२ योजन में यदि हम लघु योजन भी लें तो ४-कोश का एक योजन होता है, तो ४८-कोश इसका रहा होगा। ४८-कोश यानि ९६-मील) अब रहा सवाल कि इसका क्षीण कैसे हुआ? काल की वजह से हुआ? तो मैं कहता हूँ कि अच्छा हुआ कि पर्वत छोटा हो गया नहीं तो हालत खराब हो जाती। हम लोग वन्दना नहीं कर पाते।
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