क्या राग में हिंसा होती है? जैसे रामायण में रावण ने सीता हरण किया तो क्या राग वश किया? क्या कौरवों और पाण्डवों में जो युद्ध हुआ वो राग वश हुआ और उसमें हिंसा का दोष किसे लगेगा?
जैन धर्म के अनुसार अहिंसा और वीतरागता दोनों एक दूसरे की पर्याय हैं। आपने पूछा कि क्या राग में हिंसा होती है? जब जैन दर्शन की गहराई में जाओगे तो राग मात्र हिंसा है। राग में हिंसा होना अलग बात, राग का नाम मात्र हिंसा है। राग हिंसा है क्योंकि वह हमारी आत्मा का हनन करता है। जिससे आत्मा का हनन हो वह हिंसा है चाहे स्व की आत्मा हो, चाहे पर की आत्मा हो। इसलिए कहते हैं कि राग आदि विकारों की अनुत्पत्ति ही अहिंसा है और राग आदि की उत्पति ही हिंसा है।
इसलिए जब तक राग है तब तक हिंसा है। इसलिए जैन धर्म में अहिंसा को जीव का स्वभाव बताते हुए उसे वीतरागता के पर्याय के रूप में गिना गया। आचार्य समतभद्र महाराज जी कहते हैं कि अहिंसा भूतनाम द्विदधभूतम… इस अहिंसा को परमब्रह्म की संज्ञा दी गई है। इसलिए इस परमब्रह्म स्वरूप तत्त्व को प्राप्त करना जो वीतरागता का ही एक रूप है, अहिंसा के बिना सम्भव नहीं है।
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